भारतीय साधना और उसकी विशेषतायें | Bharatiya Sadhna Aur Uski visheshatayen

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Bharatiya Sadhna Aur Uski visheshatayen by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १० 1 पर श्रारूढ होकर श्रपने लद्दय द्रष्टुः स्वरूपे श्रवस्यानम्‌' को प्राप्त करता ই 1 इस प्रकार कम शरीर ज्ञान का क्रम समुचय होना चाद्ये । परस्तु वेद ने कई स्थानों पर शान और कमं के सह समुचय हो महत्य दिया है । উ यन बरस च चुत च सम्यचो चस्तः सह! तथा 'विद्याब्वाविद्याच यस्तद्येदोमय ४8 सह | र्यात्‌ जो ब्रह গীত বন, विद्या श्रौर अविया, ज्ञान और कमं को साय साय लेऊर चलता है, वही कल्याण प्राप्त करता है। जैसे पत्नी दोनों पर्ों के অহা श्राकाश में उड़ता है, एक पस से नहीं उड़ सकता, वैसे ही शाम श्रीर कर्म दोनों की सहायता से ब्रह्म प्राप्ति होती है| श्रीमद्भागवत में निविव साधन पथ का वर्णन है। भगवान उद्धव से ई कहते हंः-- योगाखयो मया प्रोक्ता दण प्रेयो विधित्सया । ज्ञानं कमे च भक्तिश्च नोपायोऽन्योऽस्ति छुत्रचित्‌ ॥ १९।२०1६॥ मनुष्यो के कल्याणार्थ तीन योगो का मैने उपदेशं दिया ६} यह तीन योग हैं ; शान, कर्म श्रौर मक्ति | इन तीन के भ्रतिरिक्त कल्याण का श्रन्य को उपाय नहीं है। यहाँ गीता के द्विविध योग के स्थान पर प्रिविध योग का वर्णन ह, जिम भक्ति-योग का समावेश श्रधिक है। गीता भी भक्ति योग को पृथक नहीं करती | वह शान श्रौर कम में है इसका समावेश कर लेती है। साधन- मक्ति कर्म के अन्तर्गत श्रा जाती है श्रौर साध्य भक्ति ज्ञान के ।१ साथ्य भक्ति को ही परा-भक्ति कहा गया है। ज्ञान प्रधान साख्य मागं मे तत्व दशन कौ महत्ता है। किसी वस्तु फा तात्विक ज्ञान उसके खवरूप का दशन करा देता है। वस्तु का स्वरूप दर्शन ही श्रभीष्ट है | जब तक बस्तु का तात्विक ज्ञान नहीं होता, तभी तक मन उसके अह श्रौर त्याग के सम्बन्ध में चचल रहता दे | स्वरूप दर्शन होते ही वह स्थिर हो जाता है। साख्यकारिकाकार ने ६७वीं श्रौर ६प्वी कारिका दसी तष्य का उद्घाटन किया है |* गद्वौतवादियों में तो 'ऋते ज्ञानान्न मुक्ति. ज्ञान के ३--ये शानार्था. ते प्राप्त्यर्था | साध्य वस्तु प्राप्य होती है। २--सम्पग्तानाधिगमाद्‌ धर्मादीनामज्ारण प्राप्ती ! तिःढति सस्कार्‌ बशाचभ्रमिवद्‌ धृत शरोरः ।। ६७ ]] रातति शर भेदे चरितार्थत्वात्‌ प्रधान विनिवृत्ते । ऐकान्तिसमात्यन्तिऊमुभय कैवस्यमा'नोति || ६८ ||




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