चलो दिल्ली | Chalo Dellhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
782 KB
कुल पष्ठ :
48
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)580
पल्लो दिल्ली । ह दो सौ सातः
अभियुक्तों पर भारत का कानून साग नहीं
उन्होंने कद्दा कि अपने खतरे फी दृष्टि से इन लोगों पर
आप फौजदारी कानून लागू कर হই छू. जिन्होंने अपने देश की
स्वतंत्रता के लिये संगघिटत सेना के सदाय के नाते लड़ाई
कदी । यदि ये भमियुक्त सफल हो गम्ये होते तो यद श्रदानत
उत्तर पर मुकदमा नहीं चल्ताती । देश को स्वतन्त॒ करने के - अपने
उद्देश्य मैं असफल हो जाने से द्वी वे युद्धात अस्थायी सरकार फी
सेना की सदस्यता से यंचित नदी किये जा सकते, क्योंकि
उनकी सख्या बहुत अधिक थी और उनमें सभी आवश्यक হা
थे । उन्दोंने पताया कि दोनों वक्त-प्रिटिश सैन्य दल और आ०
हि० फौज युद्ध करने की स्थिति में थे। अतः भारतीय दरद
विधान के ७६ यें दफे के अन्तगंव अभियुक्तों पर भारत के
कानून लागू नहीं द्वो सकते । सरकारी पक्ष जो सिद्ध फरना
बादता दे बद् ऐसी दी दे जैसे इन धीनों अभियक्तों ने अपने
द्वित के जिये किसी को हत्या की द्ो।
श्री भूलाभाई देसाई ने यद्द भी कट्दा कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून
उस मध्यकाज्ञीन स्थिति को भी स्वीकार करता है जिसमें युद्ध करने
वाले पिद्रोद्दी स्वतन्त्र द्वोने को आशा करते हैँ और अभियुक्त
निद्चिचत रूप से इस स्थिति तक पहुँच गये थे। उन्दने काकि
मैं सरकारी वकील के उस काय के लिए आभारी हूँ जिसमें
उन्होंने काग्रच्नात पेश कर यद्द सिद्ध करने की चेष्टा की दे कि *
ब्रिटिश सेना और आ० दि० फौज में युद्ध द्वी रद्दा था। उन्होंने
अदालत के न्यायाधीशों से अनुरोध किया कि आप জীন হল
कैसले पर पहुँचें कि युद्ध जारी रखने में अभियुक्तों ने जो कार्रवाई
की उसके ज्षिये वे छोड' दिये जाय क्योंकि एक संगठित सेना के
४. . खदस्य भो अपने को इसो वरद छोड़ दिये जाने का दावा करेंगे ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...