नीर विनोद मेवाड़ का प्राचीन इतिहास | Veer Vinod Mevar Ka Prachin Itihas

Veer Vinod  Mevar Ka Prachin Itihas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द््ए इडियी उपरोक्त कारणों तथा इसी प्रकारकी घ्न्य अन्य वातोंसे मेवाडके प्राचीन इतिहास 3 स सन्मान होता है महाराणाओंका चड़प्पन ्ाजतक वहाठ हू #७ _ # चीरघिनोद लिन पा लि कप जन थे. बपाथथा सर पजिय सजा न बाय था जनगिा था पे हा जा नि नशा जा भागवतके अनुसार वंशावली -२३१ ना बनपनिय बीए आल नथननल जल अच हम मेवाटके राजासोंकी प्राचीन वंदावठी लिखना शुरू करते हैं जिस 3 | कलम ८ रथ का न्टुस्तानके ठोग मंजूर करते ह प्रचछित हु घ्ार वे निम्न खिखित है ज न भ | | घ्यादि नारायण न्र्ह्ला मरीचि कय्यप विवस्वान सूर्य मनु चेचस्त्रत चिकन पुरजय ककुन्स्थ घ्यनना चेन पथ विय्वरंघि चन्द्र युवनाइव - 9 दाचस्त चददय्च कुचलयायव पु मार टढाइव हयदच - 9 निकम्म दे चह्णाइय अनार रुदायव सनजित युवनाइव - २ मांघाता पुरुकुर्त टिद्ध। अनरण्य ह्यद्व - २ घ्प्रमण त्रिचन्धन सत्पत्रत च्रिद्यांक हरिश्रंद्र राहित हरित चप सुदेव चिजय भरुक चाहुक सगर असमंजस गा घ्यंशुमान दिलीप भगीरथ श्रुत नाभ सिंघ दीप अयतायु ऋतुपण सर्वकाम सुदास सित्रसह कलसाप- पाद घ्प्रप्सक मूक नारीकवच दुदारथ- 9 ऐडविड विश्वसह खट्टाड् दीर्घ॑वाहु दिलीप र्घु च्प्रज दशरथ - २ रामचन्द्र कु घ्प्रतिथि निपध नभ पुएडरीक लेमघन्वा देवानीक अनीह पारियात्र चठ स्व च्नाभ खगणए हिररयनाभ पुष्य घुवसान्घि सुर्दून अग्निवणे शीघ्र मरु हिठे तो चह वंन्ञावठी छिखेंगे जो संस्कृत यन्थोसे मिठती हु ध्योर जिसको सब घ्प्रगर्चि मह्दाभारतके हरिवंश तथा काठीदासके घवंडा घोर श्री सद्घागवततके नवम स्कंघकी पीड़ियामें कुछ कुछ अंतर है परन्त हमको भागवत के प्लनसार पीटियां ठिखनी चाहिये जो ग्रन्थ कि हिन्टुस्तानके अधिक हिस्सोंमें पु पड स्म्श्द् जय या जच्यया जाय गज याथपटलाक आय फट पे यकयया जाय पाया जाय जाया जया 1 प्र पणिणण लननाजज्ाधयय ला ब्ापथ 2 न्ग्न्द नकशशशशशशशशननकशनशनशिननयकलनजनलथथायजटाल बजाय जज जन 1




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