आर्ष-चिंतन के विकल्प | Aarsh Chintan Ke Vikalp
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
185
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ आर्षं चिन्तन के विकल्प
मे आकर, एकेश्वरवाद एवं सर्वेश्वरवाद के संकेत छोड जाता है । वैदिक सूक्तो
की, ब्राह्मणो, उपनिषदों एवं सूत्र-ग्रन्थों में बराबर व्याख्या होती रही और
अर्थ-विस्तार में नये संदर्भ जुड़ते रहे । अस्पष्ट अंशों के लिए, कथाओं का सृजन
ब्राह्मण-ग्रन्थों से होने लगा था । कथाओं के सूत्र उस समाज के लिए गए जो आर्यो
एवं आर्येतर जातियों का मिश्रित समाज बन चुका था या बनने के क्रम में था ।
बाद में यह प्रवृत्ति बढ़ती गई और पौराणिक साहित्य में चरम सीमा पर पहुँच गई ।
हिन्दू धर्म और संस्कृति के प्राकवेदिक संदर्भ
आज जो भारतीय संस्कृति है, उसमें वैदिक संस्कृति के अंश बहुत कम
है । इसका कारण यह है कि यह संस्कृति, हिन्दू धर्म से अनुप्राणित है । हिन्दू धर्म
के सूत्र अत्यन्त प्राचीन हैँ ओर इतिहास के उस अंधकार में हैं जहाँ टटोलने के
अतिरिक्त कोई अन्य उपाय नहीं है । वास्तव मे, यह प्राक्वैदिक धर्म है ओर विश्व
के प्राचीन धर्मो मे इसका स्थान है । इसके स्वरो की अनुर्गूज, विश्व के सभी प्राचीन
धर्मो-- विशेषतया भारोपीय धर्मो में व्याप्त है । इसीलिए इसे सनातन हिन्दू धर्म
कहा जाता है । इस धर्म के अनेक सूत्र, यहाँ की आदिम जातियों में बिखरे हुए
थे। नॉर्डिक नस्ल के आर्यों के प्रबल दबाव के कारण, आदिम निवासियों (जिनमें
आष्टक, मंगोल तथा द्रविड आदि नस्लों के लोग थे) को, आर्यो के प्रथम निवास-कषत्र
ब्रह्मावर्त (सरस्वती ओर दृषद्वती नदियों का मध्य भाग) से निष्कासित होना
पड़ा । किन्तु ब्रह्मर्षि देश' (कुरुक्षेत्र और मथुरा का प्रान्त भाग) में यह आदिम धर्म,
अपने बिखरे हुए रूप में, आर्येतर जातियों के बीच, उनके विश्वासों एवं मान्यताओं
में जीवित और सतेज था । यह, ब्रह्मर्षि देश के पूर्व उस देश में भी था जिसे मनु
(२.२१) ने मध्य देश” कहा हैं । हिमालय और विन्ध्याचल के बीच, कुरुक्षेत्र के
पूर्व और प्रयाग के पश्चिम का क्षेत्र मध्य देश है । ऐतिहासिक हिन्दू धर्म का उदय,
आर्यो एवं अनार्यो के संघर्ष एवं संतुलन की स्थिति मे, उपरोक्त ब्रहयर्षिं देश में
हुआ और उपरोक्त मध्य देश में उसका विकास हुआ ।
अनार्यो को पराजित कर, गुलाम बना लेने के बाद भी आर्य लोग, अपने
समाज को, उनके विश्वासों एवं मान्यताओं के संक्रमण से नहीं बचा सके ।
जैसे-जैसे वे पूर्व की ओर बढ़ते गए वैदिक धर्म को बचाना मुश्किल हो गया ।
वास्तव में पूर्व का यह धर्म, विविधात्मक था । पूर्व की संस्कृति अन्तर्वेधी संस्कृति
थी । आर्यो के समाज मे, अनार्य दासों एवं दासियों की संख्या इतनी अधिक थी
कि उनको मान्यताओं के प्रभाव से, आर्य धर्म का विघटन प्रारम्भ हो गया । अनार्य
` दास वर्ग ने, समाज के निम्न वर्गों को अधिक प्रभावित किया । इनमें कुछ लोग
पहले के सम्पन्न लोग थे । संस्कृति के उच्च स्तर पर थे । दुर्भाग्य से उन्हें दास
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