भूदान - यज्ञ : क्या और क्यो? | Bhoodan Yagya : Kya Aur Kyo
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
283
श्रेणी :
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No Information available about श्रीचारुचन्द्र भण्डारी - Shreecharuchandra Bhandari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)নর भूदान: षया सौर्यो ?
प्रघ टै वि यह् मोपण भृभि-धुवा रै वयो? ऊपर जो ভুত দা মনা
ह, उसमे गवा कारण भी समाहित है। भगवान् ने राबके समान भाव से
उपयोग ये लिए 'पचभूत' या जो दान किया है, भूमि उसीमें से एवं है। मनुप्प
मे जीवित रहने वे! लिए 'पचनूत' वी प्रत्मेदा वस्तु वी आवश्यवता अपरिदार्य
है। मनृष्य के चठये-फिरने के एिए गयन मी, साँस र्मे के दिए वायु कध, पीने
ने लिए जए की और ताप-रक्षा वे! लिए प्रदाश पी आवश्यवता है। ये चारो
भीजें तो भनुष्य अपनी आवयश्यवता थे अनुसार रामान अधिवार थे साथ ग्रहण
कर सकता है, विन्तु वेवछ इन्ही चीयो यो ऐेयर जीवित नही रहा जा सवता !
जीवन-रक्षा के लिए इन वस्तुओं वे” अतिरिवत साथ-पदार्थों, यस्यो भौर
निवास-स्पान वी भी आवश्यवता होती है। साय-पदार्थों, वस्त्रो और निवास-
स्थान वे' लिए आवश्यक सामप्रियो ?े उत्पादन या एवमास साधन भूमि या
भूगर्भ है। अतएवं भू-उत्पादित या भूगर्भ-उत्पादित सामग्रियों पर मलुप्य
वै भोजन, वस्त्र और निवास वी व्यवस्था मिर्भर बरती है। भूमि या भूगर्भ
छोडवर जोर किसी भी साधन से इन आवश्यवताओं की पूति नही हो सबती ।
मनुष्य अपने हाथो से या यन््त्रो के सहारे अनेक पदार्थ तैयार कर सबता है,
विन्तु खाद्य-सामग्रियाँ, साग-स जी और फल-मूछ एस्मात्र भूमि से ही उत्पन्न
हो सबते है। हमारे पस्थादि वे! लिए रई और चरसा तथा ताँत बे' लिए छकडी
भूमि से ही उत्पन होती है, वस्त्र-निर्माण वे यत्नो वा छोहा भी भूगर्भ से ही
उत्पतन होता है। घर या निवास मिट्टी, ईंट या पत्थर से बने, पर उसवी प्रत्येवः
सुपमग्री भूमि या भूगर्भ से ही उत्पन्न होती है। इस प्रकार थोडा भी विचार
करने से यह वात समस में आ जाती है कि हमारी जीवन-रक्षा और सुख-
स्वच्छदता के लिए जिस किसी सामग्री वी आवश्ववता पडतोी है, उसकी
उत्तत्ति भूमि या भूगर्भ से ही होती है। वायु, प्रयाश और जल वे साथ भूमि
का पार्थयय यद्दी है वि वे सव सहन सुखभ है, उनको पाने थे लिए परिश्रम
नहीं करना पडता, परन्तु खाद्यात, वस्त्र तथा निवास-स्थान पाने के लिए
चोटी का पसीना एडी तक बहावर परिश्रम करना पडता है। भगवान् ने
मनुष्य को जहाँ खाने दे! लिए एव सुंह दिया है, वही उत्पादन करने के लिए
दो हाथ भी दिये हैं। भूमि मनुष्य के जीविकोपाजेन वा मौलिक क्षेत्र और खाद्य-
पदार्थ, बस्त सथा निवासस्थान वे उत्तादन का मौछिक साधन है। इसीलिए
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