तरंगित हृदय | Tarangit Hridaya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Tarangit Hradaya by देव शर्मा -Dev Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about देव शर्मा -Dev Sharma

Add Infomation AboutDev Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
५ नमस्कार चरण वह हैं जो इस संपूर्ण विश्वके अदृश्य आधार है । तुम्हारे दिये इषः सुखदुःखादि उन्दोके रूपमे मेरे खुले इए दाथ हैं. जिन्हें बिना जोड़े-विता मिलाए-तुम्हे नमस्कार करना असम्भव है। मेरे अन्द्र अदहद्बार का तत्व भी ठुमने दिया है जो कि मुझे और सब व्यक्तियोंसे, तुमसे भी, विशेष बनाये रखता है श्रल्लग बनाये रखता है। इसी मस्तकको मेंने तुम्हारे आगे पूर्णतया झुका देनेके लिये ही अवतक ऊँचा किये रखा है। हे मातः! अब मुझे अवसर दो कि में अब श्वन्तमे तुरग भी प्रणाम कर लूँ और प्रणामकर कृतरुत्य हो जाऊँ। कक छ जय में यह देखता हैँ कि सब ब्रह्मारड গনী वृदवसे घहत्‌ , महादसे महान, विशालसे विशाल वस्ठुओ सहित खब देरे चरणाम गिरा पड़ा है, जब सुफे यह दृश्य दिखाई दे जाता है तो में भो अपना सब कुछ तुभे श्रपण कण्नेके लिये आतुर होने लगता हैं ओर यह सचमुच अनुभव करने लगता हैं कि तुम्दे णाम कर लेना हो जीवनका लदय है! श्रपने एक २ कर्म रूपी नमस्कारो छारा, श्चा यार्मोङे कर्मासि सषा भरणिपात करते हुए दी तेरे चरणोकों मुझे भाप्त करना हे ओर फिर तेरे चरणांकी धूलिमे निधिन् होकर लोटना है । तेरे चरर्णोकी धूलिमे निश्चिन्त होकर लेटना !! इससे बढ़- कर ओर आनन्द क्या है, मोच्त कया है, प्राप्तव्य स्थान क्या है |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now