स्मृति श्लोक संग्रह | Smriti Shlok Sangrah

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Smriti Shlok Sangrah by हीरालाल प्रतापचन्द जी - Heeralal Pratapchand Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) स॒त्रतस्तु शुना दषटसिरा्रथ्ुपवासयेत्‌ ॥ सधूतं यावाकं प्राश्य धृतशेपं समापयेत्‌ ॥६८॥ यदि बती बाह्मण को कुत्ते ने काठा हो तो बढ तीन दिन क उपवास करे, ओर घृत सहित यावाक ( आधा पका हुआ जो वा कुलथी ) का भोजन कर बत की समाप्ति करे ॥ ६८ ॥ मोहात्ममाद त्वसोभाद्व्रतर्मेगं तु कारयेत्‌ ॥ দিবি হত पुनरेव वतीभयेत्‌ ॥६६॥ লীহ লা श्रसावधानता से यालोमे के वश से जिसने त्रत भग कर दिया. बद तीन दिन तक उपवास करने से शुद्ध द्वोता है और फिर অল জী धारण करे ॥६६॥ अज्ञानात्माश्य विरमृत्र सुरा संस्पृष्टमेव वा ॥ पुनः संस्कारमर्हति त्रयो वणां द्विजातयः ॥७४॥ जिस बाह्मण, क्षत्रिय ओर वैश्य ने विष्ठा, सूत्र वा सुरा जिस में मिली हो ऐसी कोई चस्तु अज्ञान ( भूल ) से खाई है, तो बह -फिर संस्कार के ( यशोपवीत इत्यादि के योग्य है ॥ ७४ ॥ एकेकं बद्ैयेननिलयं शुक्रे कृष्णे च दूसयेत्‌ ॥ अमाव्ां न जीत एय चाद्रायणो विधिः ॥११०॥ , शङ्गपक्त की प्रतिपदा को केवल पक दी সাজ বাহ? হজ दिन से प्रारम्भ कर पूर्णिमा तक एक २ ग्रास को बढ़ाता जाय, अथात्‌ पूर्णिमा तक तिथि की सेख्या के अंजुसार आसो की संख्या होगी, ओर कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से प्रति




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