हिंदुस्तानी (एकेडेमी की तिमाही पत्रिका-1932) | Hindustani (hindustani Academy Ki Timahi Patrika-1932)

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ताराचंद - Tarachand

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बेनीप्रसाद - Beniprasad

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रामचंद्र टंडन - Ramchandra Tandan

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रामप्रसाद त्रिपाठी - RamPrasad Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.२. 1 ® हिंदुस्तानी ख रख, गए, घ 5, चल; जड़, अडा, श हे, तत थे ४ ध 5, से पणबढ्भर,सम्यन्‍्य लछ, व 5, श र, प ५, और स ₹ वाक़ी बचते हैं क, ऊ, छ, के, 2, ठ, डे. ढ़. दे, फे, २ ओर है। इस से से क, के और फ्र का दूसरा रूप अंतिम नोक हट कर बन सकता हैं ( र, हफ्त, सममना ) और उसी का अयोग करना चाहिए । शेष के नौच हल्‌ का चिह्द लगाना चाहिए। ङ का व्यवहार प्रावः नहीं होता | उस दे स्थान पर असुस्वार की बिंदी लगानी चाहिए | छू का प्रयोग बहुत कम होता है (कली) वहाँ हल चिह् लगाने में कोई आपत्ति न करनी चाहिए। ट, ठ. 7, ट, आर ट् को लिखने के लिये आज कल पूरा ( किंतु जरा छोटे आकार का ) लिखते हैं ओर उस के नीचे बाद को आने वाला व्यंजन लिखते हैं रीति यदि अधिक नहीं तो कम से कम उतनी कष्टसाध्य अवश्य है जितनी हल का चिह्न लगाने की। मेरी समर में अटठा, अडझा, उद्यान, लिखना अद्दा, भड्ठा, उद्यान, से आसान है । २ का प्रश्न टेढ़ा है, इस को आगासी अज्ञर पर चिह्न लगा कर सूचित करते हैं । प्रचलित प्रथा अधिक सुभीते की है-लोग अर्थं को अरघ से अधिक पसंद करेंगे। मेरी समझ मे लिखने में और टाइपराइटर में इस अथा को चलने देना चाहिए। फेवल लिनोटाइप मशीन पर संभवत: र व्यवहार में लाना पड़ेगा अन्यथा ( क%, से आदि ) इकतीस चिह्न रखने पड़ेंगे। अथवा को आगामी अज्ञर के ऊपर न रख कर उस के पूर्व रक्‍्खा जाय (अ कअक )। व्यंजन के उपरांत आने वाले २ का - चिद्द लिखने में, टाइपराइटर में तथा लिनोटाइप मशीन सभी में रखना पड़ेया । इस का कोई उपाय नहीं ! केवल ~ के अन्य रूप / (ट) (तर) (क) आदि बंद कर देने चाहिए। इस प्रकार र के तीन रूप (२, , -) और अन्य व्यंजनों के दो दो रूप स्थिर हो जाएंगे और विद्यार्थियों को नीचे लिखे संयुक्ताज्तर याद करने का परिक्षम नहीं उठाना पड़ेगा--- के, के; के, क, के, न, है, हैं, हे, दे, जे, है, 8, व्य, ट्, टू । |, डूं, জ্যঃ ভু व्यू, ढे , त्त, ज, हू, दे, थे, तब, डर, पं, সঃ लक, कफ, अर, स्त, ज, हू, ह, का, है, हू, हे




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