लायली आसमान | Laylee Aasmaan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
334
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२० लायली झ्ासमात
तब क्या सब भ्ूूठ है !
वह आवाज |
कुन्दन के हृदय में वह सुर बज रहा था | चमेली की वह सुगंध !
वह भी क्या उसके विश्वान्त, दिगश्रम हृदय को कल्पना थी १ लायली
से इतर सुवासित कुन्तल की सुवास नहीं !
लायली; लयली, लायली |
कुन्दन के निराश गले की पुकार ने कुन्दन से ही व्यंग किया ।
গাইল के सामने बेल-बूटेदार पर्दा कुन्दन ने लगा दिया । जीवन मे
लायली उसके लिए सहज नहीं हुई । मरने के बाद मी वह परिहास ही
करेगी, इसमें आश्चर्य হী কনা १ |
सिर क्रुकाये कुन्दन बैठा रहा । हृदय के अन्दर उसकी कितनी ही
बातें, कितने ही गाने, कितनी ही कली, छोटे-छोटे बुदबुदे की तरह
बनती-बिगड़ती हें |
शुमादान की बत्ती एक बार बुझ गयी | उस समय खिदिरपुर के
रास्ते पर रात फैल चुकी है। बहुत दूर मस्जिद में कोई नमाज पढ़ रहा
है | शायद दिन भर समय ही नहीं मिला था। और कुन्दनलाल की
फुलवारी को जूही-चमेली की भाड़ियों से भींगकर हवा रपद्टा मार-मार
कर सुगन्ध फेला रही दै |
सब कुं वैसा ही है, जो तीन वषं पहले था । केवल लायली
आसमान के शौक की जूही-चमेली की माला अब भाड़ से नहीं कूलती
रहती है । और न तो लायली के शयन-कक्ष की खिड़की से मूख
बजरंगी सारंगी छेड़कर अब लायली के गानों के ही सुर की भेंट
भेजता है |
कोई बेदरदी गुले-बुलबुल को न सताना ।?
“कोई बेदरदी गुलाब का काँटा बुलबुल को तकलीफ न दे |!
लेकिन कुन्दन क्या एक अबोध बागवान है ! उसी बाग का माली
है ।
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