लायली आसमान | Laylee Aasmaan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Laylee Aasmaan by वीरेंद्रनाथ मिश्र - Veerendranath Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वीरेंद्रनाथ मिश्र - Veerendranath Mishra

Add Infomation AboutVeerendranath Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
२० लायली झ्ासमात तब क्या सब भ्ूूठ है ! वह आवाज | कुन्दन के हृदय में वह सुर बज रहा था | चमेली की वह सुगंध ! वह भी क्या उसके विश्वान्त, दिगश्रम हृदय को कल्पना थी १ लायली से इतर सुवासित कुन्तल की सुवास नहीं ! लायली; लयली, लायली | कुन्दन के निराश गले की पुकार ने कुन्दन से ही व्यंग किया । গাইল के सामने बेल-बूटेदार पर्दा कुन्दन ने लगा दिया । जीवन मे लायली उसके लिए सहज नहीं हुई । मरने के बाद मी वह परिहास ही करेगी, इसमें आश्चर्य হী কনা १ | सिर क्रुकाये कुन्दन बैठा रहा । हृदय के अन्दर उसकी कितनी ही बातें, कितने ही गाने, कितनी ही कली, छोटे-छोटे बुदबुदे की तरह बनती-बिगड़ती हें | शुमादान की बत्ती एक बार बुझ गयी | उस समय खिदिरपुर के रास्ते पर रात फैल चुकी है। बहुत दूर मस्जिद में कोई नमाज पढ़ रहा है | शायद दिन भर समय ही नहीं मिला था। और कुन्दनलाल की फुलवारी को जूही-चमेली की भाड़ियों से भींगकर हवा रपद्टा मार-मार कर सुगन्ध फेला रही दै | सब कुं वैसा ही है, जो तीन वषं पहले था । केवल लायली आसमान के शौक की जूही-चमेली की माला अब भाड़ से नहीं कूलती रहती है । और न तो लायली के शयन-कक्ष की खिड़की से मूख बजरंगी सारंगी छेड़कर अब लायली के गानों के ही सुर की भेंट भेजता है | कोई बेदरदी गुले-बुलबुल को न सताना ।? “कोई बेदरदी गुलाब का काँटा बुलबुल को तकलीफ न दे |! लेकिन कुन्दन क्या एक अबोध बागवान है ! उसी बाग का माली है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now