सेठ जमनालाल बजाज (सचित्र जीवन छत्रिय ) | Setha Jamanaalaal Bajaaj (Sachitra Jiivan Charitra)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
135
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २ )
उसी मरुस्थल में, सीकर से चार काोस दूर, “काशी का वास! नाम
का एक छोटा सा गांव है । आज से तीस चालीस व पहले उस गव
की दीन-द्शा का अंदाज़ा इसी से छगाया जा सकता हे कि गाँव में
एक भी कुंवा नहीं था । गावि वाले एक कोस दूर से, कदम का वासः
नाम के रवसे, पीने का पानी टाया करते थे। गाँव में किसी के
पाप्त इतना धन ही नहीं था कि वह एक कुँवा तो खुदवा लेता ।
उसी जलूहीन, धनहीन, नीरस गाँव में श्रोकनीरामजी बजाज
नाम के एक वैश्य रहते थे । वे साधारण किसानी का छाम करते थे
ओर कुछ लेन-देन भी करके किसी तरह अपनी जीविका चलाते थे ।
कनीरा £जी के घर सौ० विरदीबाई के गर्भ से कातिक शुक्ला १२, सं०
१६४६, ता० ४--१ १-१ ८८६९ का एक वुच्र न जन्मधारण किया, जो
इस समय सारे भारत में सेठ जमनालछाह बजाज के नाम से प्रसिद्ध हे ।
जो रत बड़े बड़े नगरों में, बड़े धनी-मानी कुटम्बों में नहीं पेदा हुआ,
वह एक नन्हे से गांवड़े में, एक साधारण व्यक्ति के घर पेदा हुआ । जो
गोरव कलकत्ता, बम्बई, कानपुर, नागपुर, दिल्ली ग्रादि को नहीं লিভ্যা,
वह “काशी का वास” का मिल्मा । जिस यश के लिए बड़े बड़े सेठ सरदार
ब्ालायित रहते हैं, वह श्रीकनीरामजी का मिटा। जा महिमा
पंजाब के गेहूँ रार बङ्ाट के चावट को नहीं मिली, वह मारयाड़ के
बाजरे को प्राप्त हुई |ईध्वर की लीला अपार है । जिस पर उसकी
क्ृपा-दष्टि पड़ जाती है, वहीं बड़ा हो जाता हें । वह दीनबंघु है, इससे
उसके राज्य में दीनां का ऊँचा उठने की सर्वत्र स्वतंत्रता हे ।
दीनता ईश्वर का बहुत प्रिय है । तत्टसीदास तो जन्मभर एक
ही बात माँगते रह--
तू गरीब का निवाज हों गरीब तेरो ।
एक बार कहहु नाथ ! तुलसिदास मेरो ॥
भा, जिसे भगवान् कहेंगे कि 'यह मेरा है,” उसे संसार में दुछ्लभ
क्या रहेंगा ?
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