ग्राम स्वराज्य | Gram Swarajya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन काल में ग्राम-संस्था उसके द्वार सुरक्षित रखे जाये । वागुरिक, शवर, पुलिक, चाण्डाल तथा जंगली लोग शेप सम्पूर्ण सीमा की रक्षा करें । ऋत्विक्‌ , आचर्य, पुरोहित तया श्रोत्रियों को अमिरूप फलदायक ब्रह्मदेश दिया जाय और उनको राज़दण्ड और राज्यकर से मुक्त कर दिया जाय। अध्यक्ष, सख्यापक, गोप, स्थानिक अनीकस्थ, चिकित्सक, अश्, दमक, जंघा- रिक आदि राज्य-सेवका को भूमि दी जाय; परन्तु उन्हें यह आधिकार न हो कि वह उसे बेंच सकें या थाती ( गिरवी ) रख सकें। राजस्त्र देने वाले लोगों को ऐसे खेत दिये जाये, जो एक पुरुष के लिए पर्याप्त हों | खेतिहरों। का नई भूमि नहीं दी जाय । जो खेती न करें, उनसे खेत छीन कर दूसरों को दे दिया जाय । ग्राम-भृतक था बनिये ही उन पर खती करं । ज खेत जोतें, वे सरकारी हर्जाना भरें । जो सुगमता से राजस्व दें, उनका धान्य, पत्ष तथा हिरण्य से सद्दायता पहुँचाई जाय। साथ ही यह ख्या८ रखा जाय कि अनुग्रह तथा परिहार से कोप की ब्रद्धि हो और जिससे कोप की द्वानि की संभावना हो, उसकों न किया जाय । क्यों कि अव्प कोष वाला राजा नामरिकों तथा ग्रामीणों को ही सताता है । नये वन्दोवस्त मा अन्य आकास्मिक समय में हो विशेष विशेष व्यक्तियों को राजस्व से मुक्त किया जाय | जिन लोगों का राज्यकर-मुक्ति था परिह्दार का समय समाप्त हो जाय, उन पर पिता के तुल्य अनुग्रह रखा जाय | ० चाणक्य के अर्थ शाम्त्र में ग्राम-संस्थाओं का जो विवेचन उपर्युक्त अवत- रण में दिया गेया है, उससे यह स्पष्ट है कि ग्राम संस्थाएँ पूर्णतः स्वायत्त-शासित सस्थे थ । इस आाम-सभाओं में ग्राम-वारतियों के हितों से संबाधित प्रद्मक ७, डॉ. आणनाथ विद्यालंकार: अर्थ झाखत्र छू. ३९-४१ अनुग्रह : उत्तम काम करने के उपदक्ष्य में राजा किसानों व कार्रागरों को जो पुरस्कार देता है , उसे अनुग्रह कहा गया हैं । परिहार : राज्यकर से मुक्त करना। पुत्रोत्पीत , जन्म-दिवस आदि पर राजा ऐसा करते हैं। ८.




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