स्वास्थ्य सचित्र विसेसंक | Swastya Sachitra Visesank
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी श्री कृष्णानंदजी महाराज - Swami Shri Krishnanandji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)নিলু জালেজীে ভা कल्ला খি. ১ हैं, 3. 3. $.
डिप्णी हेल्थमिनिस्टर, पब्लिक हेल्थ डिपाटमेन्ट वम्बई का
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--- ओजस्वी भाषण -_--
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पूज्य स्वामी कृष्णानन्द जी, पृज्य साधुगण तथा
वैद्य समाज ,
आज मुझे अस्यन्त प्रसन्नता है कि हम लोग एक
शोध कार्यके देखने तथा उस विपय पर चची करनेके
लिये. इकट्टे हुए हैं | कष्ण गोपाल आयुर्वेद भवन जो
सेबा वर्षोंसे आयुर्वेदकी करता आया है. वह हम सब
लोगोंको विदित दै | आयुर्वेद प्र शोध आजके समयमे
कितनी आवश्यक है आप जैसे विह्वदू बन्धुओंको तो
विदित ही है। पर ऐसा शोध भारतमें मरी जानकारी
के अनुसार सिर्फ श्रीनगर, काशमीर,लखनऊ,जामनगर
तथा कालेड़ा-कृष्ण गोपाल भवनमें ही हो रहा है |
कालेड़ामें शोधक्रा काये इस लिए आगे' बढ रहा है
क्योकि यहां तो स्वयं सेवक तथा निःशुल्क या कम
शुल्क लेकर कार्य किया जा रहा है। अभी हम सब
लोन देखा कि पारदं पर छिस प्रकार शोधकी जा
रही है | अगर यह संस्था इस का्थमें सफल हुई, जिस्
की सुमे पूर्ण आशा है तो आयुर्वेद भी एलोपेयीकी
- कुछ ओऔपधियों को तरह चमत्कार दिखा सकेगा ।
कह भयंकर रोगोंको रोका जा सकेगा तथा इलाज भी
काफी सरल तथा सफल हो जायेगा। शोधका विषय
इतना गहन दहै कि इस या तो जन साधागरणुका आश्रय
या राज्य आश्रय अवश्य चाहिये | यह टी नहीं किसी
शोधकसे समयके विषयमें प्रश्न भी नही किया जा
सकता क्यों क्रि प्रयोग कच सफल दोगा यह निश्चय
रूपस कहा ही नही जाता। यह सौभाग्ण्की बात है
कि राज्य सरकारें तथा केंद्र सरकार आयुर्वेदके उत्थान
में सहायता कर रहो हैं। यह दोप दिया जाता है कि
राज्य या केंद्र सरकार एलोपैथीको ज्यादा धन देती
है तथा आयुर्वेदकी ओर ध्यान नहीं देती। मुझे यह
सुनकर ढुःख होता है । यह् शायद कुछ वेद्योकी राज-
नेतिक भाषा है जो और सब वेद्योको भुलावेमें डाल
देती है । अगर आप देख्गे तो राज्य सरकारोंने इन
पिछले ५ वर्षोंमें ज्यादा आयुषदिक औपषधालय एलो-
पथिक दवा खानोंके मुऊाबलेम खोले हैं| नये शिक्षा
स्कूल या कालेज खोले हैँ तथा शोध केन्द्र भी बनाये
गये हैं | इस प्रकारकी भाषास हम हमारे डाइरेक्टर
ऑफ आयुर्वेदके प्रति अश्रद्धा प्रगट करते है. तथा हम
हमारे हितके विरुद्ध दी कार्य कर बेठते है। अगर आज
सबसे ज्यादा आयुर्वेदका अहित दो रहा है तो वह'
हमारे वैद्य समाजके ही कारण है न कि राज्य सरकारों
के कारण | मैं आपको यह भी बता देना चाहता हैँ
कि भूतमें क्या हुआ या आज क्या हो रहा दे इसमें
अपना समय खराब करनेके बजाय हमें तो अपने
भविष्यका ठीक निर्माण हो डस पर सोचता तथा तप
करना है | यह मैं इस लिये कह रहा हैँ. कि जो कुछ
आज किया जा रहा है या और दो वर्षों तक होगा
हू तो सिर्फ हितीय पंच वर्षीय थोजनाके हिसाबस
ही हो सकता है| हम उस फायदैके बाहर नहीं जा -
सकते | इस योजनाको हमारे दुसरे साथियोंने बनाया
था पर हमें आज उस प्रकार काम करना पड़ रहा है।
यह कठिनाई है | तो इसका अर्थ यह हुआ कि अगर
हम आयुर्वेदका उत्थान चाहते हैं तो हम तीसरी पंच
वर्णीय योजना इस प्रकार बनाये जिससे हम उसे काफी
अच्छी प्रगतिकी ओर ले जा सके | पाय्यक्रमकी ओर
ध्यान देना ह जिससे हम सुयोग्य वैद तैयार कर सके
हमें आयुर्वेदिक अस्पताल तैयार करने हैं. जिससे हम
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