साहित्यायन | Sahityaayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ |] साहित्यायन
छृदय से अमिग्रेरित नहीं होता, तब तक बह रचना नहीं कर सकता।
इस हृदय की प्रेरणा के बिना हार्दिकता भी नहीं आती, जो काव्य में
ममंस्प्शिता का समावेश कर सकती है। यों तो साहित्यिक ग्रन्थो के
स्वाध्याय से भी नवीन रचना की प्रेरणा मिलती हैं; किंतु स्वतः अनुभूत
भाव के बिना मार्मिकता नहीं लायी जा सकती, जो रचना रचयिता को
आनंदामिभूत नहीं कर सकती, बेगारी टालने की नीयत से रची जाती है,
उससे अ्रन्य लोग आनंद नहीं पा सकते | जान बट ने लिखा है-ऐसी
चीज़ क्रमी लिखो ही नहीं, जो तुम्हें आनन्द से आप्लावित नहीं करती
हो |£ जिस रचना मेये गुण हैं, वह अवश्य ही कालजयी होती है।
वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, तुलसीदास आदि की रचनाएँ देखिए।
स्वंसामान्य भाव-भूमि पर होने के कारण, मानव-अंतस्तल से संबंधित
होने के कारण, उनकी रस-मन्दाकिनी आज भी मानव-हृदय को सिंचित
कर रही है | युग बीता कि वाल्मीकि-व्यास हुए. | बह युग और आज का
युग रंग-रूप में कतई बदल गया है । शताब्दी-पर-शताब्दी समय के पंख
पर अतीत हो गयी; किंठु रामायण-महाभारत का रस-ख्ोत जैसा तब था,
वैसा ही आज भी है | उससे आनंद की जो रागिनी तब भंकझूत हुई थी,
वही आज मी हो रही है। काल के व्यवधान को केवल ऐसी ही क्ृतियाँ
जीत सकती हैं | कालिदास की शकुन्तला जमन कवि गेटे के मन में बस
गयी। धर्म और आचार-विचार में इन दोनों कवियों की दूरी थोड़ी नहीं है।
एक जमन मनीपी ने कहा कि उपनिषद और गीता की अपेक्षा शकुन्तला
ই ঈনং राइट एनीथिय देट डज़ मॉट गिव यू ग्रेट प्लेज़र; इमोशन
इज़ इज़ीली प्रोपैगेटेड फ्राम दि राइटर टु दि रीडर |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...