भारत पर अमेरिकी फंदा | Bharat Par Americi Ka Fanda

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Bharat Par Americi Ka Fanda by एल० नटराजन -L. Natrajanओमप्रकाश संगल -Omprakash Sangal

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ओमप्रकाश संगल -Omprakash Sangal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय : दूसरे महायुद्ध के पहले भारत-अमरीका सम्बंध ' भारत और अमरीका के वीच व्यापार अमरीका ने सबसे पहले १७८० में भारत से सीधे व्यापार करना शुरू किया । उस साल ग्रण्ड ठर्के नामक एक अमरीकी जहाज कलूकते के - सफ़र को भेजा गया। अमरीका अभी हाल में ही आज़ाद हुआ था । उसके . व्यापारियों ने पूर्व में श्रेठिश और फ्रांसीसी कम्पनियों के झयड़ों से फ़ायदा : उठाया और दोनों से उविधाएँ ऐंठी । अमरीका की फेडरल ( संघ ) सरकार ने इस व्यापार को बढ़ाने के लिये क्दम उठाने शुरू किये । १७५१ फे चुंगी के क़ानून (टैरिफ्र ऐक्ट ) के द्वारा इस प्रकार के कर लगाये गये जिनसे अमरीकी जहाजों में आनिवाले आयात को बढ़ावा मिलता था। भारत से व्यापार करने .के लिये उद्यरतापूर्वक-कर्म दिये गये । १७९४ म अमरीका की चिरेन से एक . संधि हुई जिसे जे-संधि के नाम से पुकारा जाता है। उसके मुताबिक अमरीका , को भारत में व्यापार की विशेष सुविधाएँ मिल गयीं। १८०० में अकेले कलकत्ता से बारह जहाज माल भर कर वोस्टन के लिये रवाना हुए । इसी साल भारत से अमरीका जानेवाले सामान की क़ीमत तीस लाख डालर की गयी) ईस्ट ईण्डिया कम्पनी के अफ़सरों ने बहुत सी दौलत गेर-क्ानूनी ढंग से जमा कर ली थी और उसे वे सीधे इंगलेण्ड न ले जा सकते थे । अमरीकियों ने इस दौलत को ढो-छो कर काफ़ी पेसा कमाया। जे-संधि के मुताबिक अमरीकावाले केवल भारत और अमरीका के बीच व्यापार कर सकते थे । परन्तु नेपोलियन के युद्धों के काल में अमरीकी व्यापारियों ने इस संधि को ताक : पर उठाकर रख दिया और वे भारत का सामान योरप पहुँचाने लगे। इससे उनका व्यापार खूब बढ़ा । भारतीय कपड़े और मसाले के आयात ने अमरीका को, ^“ अनेक प्रकार के कारखाने खोलने में मदद की, जेंसे रेशम कातमे के कारखाने, मोरक्को चमड़ा तैयार करने के कारणाने और “उन




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