भारत पर अमेरिकी फंदा | Bharat Par Americi Ka Fanda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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एल० नटराजन -L. Natrajan
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ओमप्रकाश संगल -Omprakash Sangal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अध्याय
: दूसरे महायुद्ध के पहले भारत-अमरीका सम्बंध
' भारत और अमरीका के वीच व्यापार
अमरीका ने सबसे पहले १७८० में भारत से सीधे व्यापार करना
शुरू किया । उस साल ग्रण्ड ठर्के नामक एक अमरीकी जहाज कलूकते के
- सफ़र को भेजा गया। अमरीका अभी हाल में ही आज़ाद हुआ था । उसके
. व्यापारियों ने पूर्व में श्रेठिश और फ्रांसीसी कम्पनियों के झयड़ों से फ़ायदा
: उठाया और दोनों से उविधाएँ ऐंठी । अमरीका की फेडरल ( संघ ) सरकार ने
इस व्यापार को बढ़ाने के लिये क्दम उठाने शुरू किये । १७५१ फे चुंगी के
क़ानून (टैरिफ्र ऐक्ट ) के द्वारा इस प्रकार के कर लगाये गये जिनसे अमरीकी
जहाजों में आनिवाले आयात को बढ़ावा मिलता था। भारत से व्यापार करने
.के लिये उद्यरतापूर्वक-कर्म दिये गये । १७९४ म अमरीका की चिरेन से एक
. संधि हुई जिसे जे-संधि के नाम से पुकारा जाता है। उसके मुताबिक अमरीका
, को भारत में व्यापार की विशेष सुविधाएँ मिल गयीं। १८०० में अकेले कलकत्ता
से बारह जहाज माल भर कर वोस्टन के लिये रवाना हुए । इसी साल भारत
से अमरीका जानेवाले सामान की क़ीमत तीस लाख डालर की गयी)
ईस्ट ईण्डिया कम्पनी के अफ़सरों ने बहुत सी दौलत गेर-क्ानूनी ढंग से
जमा कर ली थी और उसे वे सीधे इंगलेण्ड न ले जा सकते थे । अमरीकियों
ने इस दौलत को ढो-छो कर काफ़ी पेसा कमाया। जे-संधि के मुताबिक
अमरीकावाले केवल भारत और अमरीका के बीच व्यापार कर सकते थे ।
परन्तु नेपोलियन के युद्धों के काल में अमरीकी व्यापारियों ने इस संधि को ताक
: पर उठाकर रख दिया और वे भारत का सामान योरप पहुँचाने लगे। इससे
उनका व्यापार खूब बढ़ा । भारतीय कपड़े और मसाले के आयात ने अमरीका को,
^“ अनेक प्रकार के कारखाने खोलने में मदद की, जेंसे रेशम कातमे
के कारखाने, मोरक्को चमड़ा तैयार करने के कारणाने और “उन
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