भाव संग्रह | bhav Sangrah

bhav Sangrah by लालारामजी शास्त्री - Lalaramji Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(হন) म्‌ कतिमात्रप्रदाने तु का परीक्षा तपस्विनाम्‌ , अर्थात श्राव लोगो ! बीतराग मुनिराजों को केवल आहार देने मात्र के लिए तुम क्या परीक्षा करते फिरते हो ? जब कि पंचम काल के अन्त समय तक साथ गण पाये जांयगे और वे चतुर्थ कालबत ही अद्राबीस मल गुणघारी परम पवित्र शुद्धात्मा होंगे ऐसा सिद्धान्त चक्रवती भचाये नेमिचन्द्रावाय त्रिलोकसार मे लिखते है । तच आज कज़ के मुनिराजों पर आक्षप करना सिवा अशुभ कमे बन्ध के ओर कुछ नहीं हे । आचाय॑ देवसेनजी का स्पष्ट क्तस्य आजकल के मुनिराजों के विषय में आचार्य देवसेन जीने अपने द्वारा रचित इस भाव संग्रह में बहुत ही सुन्दर आगमोक्त सिद्धान्त का स्पष्टीकरण किया हे वह इस प्रकार हे-- दृषिहों जिणेहि कहिओ जिणकधों तह ये थपिर कघो य । मो जिणकप्यो उत्तो उत्तमसंहणण धारिस्स ॥ ११६ ॥ जत्थण कटय भगो पाए णयणम्मि रय पव्द्म्मि । फडं ति सयं शरणिणो पराव्हारे य॒ तुण्डिका ॥ ५२० ॥ जल वरिसिणबा याई गमणे भग्गे य जम्म छम्मासं | अच्छेति णिराहारा काओसग्गेण छम्मासं ।॥ १२१ ॥ ২৬ ৭৩ कु एयारसंग घारी एआइ भ्रम्म सुक्क काणीय | यत्ता सेस कमाया मोगत्रई कंदरा वासी ॥ १२२ ॥




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-11-22 16:24:47
    Rated : 7 out of 10 stars.
    the category of the book is Religion/Jainism
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