परम चरिउ भाग 2 | Paumchhuiu Vol-II
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
394
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पद्मचारित
अयोध्याकाण्ड
इक्कीसवीं सन्धि
[ १ ] एक दिच विभोपणने सागरुद्धि भ्रद्टारकसे पूछा कि
“जयलक्ष्सीके प्रिय, रावणकी विजय, जीवन और राज्य, कितने
समय तक अविचरु रहेगा ।> तव उन्होंने कहा-'सुनो, में वताता हूँ,
जयोध्याके रघुवंशमे दशरथ नासका सख्य राजा होगा, उसके दौ
पुत्र धुरंधर घनुधोरी, बासुदेव और चलदेव होगे; राजा ज़नककी
कन्याको लेकर, होनेवाले महायुद्धोमे रावण उनके द्वारा सारा
जायगा” | यह सुनकर विभीपण एकद्स उत्तेजित हो उठा मानो
धीका घड़ा आगगमें पड़ गया हो । उसने कहा--लिंकाकी बेल न
सूखे ओर रावणका मरण न हो, इसलिए क्यों न में; सयभीपण
दशरध ओर जनकके सिरोको तुड़वा दूँ”?5। यह जानकर
कलहकारी नारद वधसान नगर पहुँचा। उसने दशरथ ओर
जनकसे कहा कि आज विभीपण आयगा ओर तुम दोनोके सिर
तोड़ देगा । तच, वे दोनो अपनी रेपमयी सूतिं स्थापित करवा कर
वर्दोसे चर दिये | विद्याधर आये और उन्हीं लेपमयी भूर्तियोके
सिर काटकर ले गये || १-१० ॥
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