परम चरिउ भाग 2 | Paumchhuiu Vol-II

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Paumchhuiu Vol-II by देवेन्द्र कुमार जैन - Devendra Kumar Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about देवेन्द्र कुमार जैन - Devendra Kumar Jain

Add Infomation AboutDevendra Kumar Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पद्मचारित अयोध्याकाण्ड इक्कीसवीं सन्धि [ १ ] एक दिच विभोपणने सागरुद्धि भ्रद्टारकसे पूछा कि “जयलक्ष्सीके प्रिय, रावणकी विजय, जीवन और राज्य, कितने समय तक अविचरु रहेगा ।> तव उन्‍होंने कहा-'सुनो, में वताता हूँ, जयोध्याके रघुवंशमे दशरथ नासका सख्य राजा होगा, उसके दौ पुत्र धुरंधर घनुधोरी, बासुदेव और चलदेव होगे; राजा ज़नककी कन्याको लेकर, होनेवाले महायुद्धोमे रावण उनके द्वारा सारा जायगा” | यह सुनकर विभीपण एकद्स उत्तेजित हो उठा मानो धीका घड़ा आगगमें पड़ गया हो । उसने कहा--लिंकाकी बेल न सूखे ओर रावणका मरण न हो, इसलिए क्यों न में; सयभीपण दशरध ओर जनकके सिरोको तुड़वा दूँ”?5। यह जानकर कलहकारी नारद वधसान नगर पहुँचा। उसने दशरथ ओर जनकसे कहा कि आज विभीपण आयगा ओर तुम दोनोके सिर तोड़ देगा । तच, वे दोनो अपनी रेपमयी सूतिं स्थापित करवा कर वर्दोसे चर दिये | विद्याधर आये और उन्हीं लेपमयी भूर्तियोके सिर काटकर ले गये || १-१० ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now