रश्मिबंध | Rashmibandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'पल्लव' की रचनाओं में वे मुखरित नहीं हो सके । 'पल्लव” की सीमाएँ
छायावादी अभिव्यंजना की सीमाएँ हैं। वह पिछली वास्तविकता के निर्जीब
भार से आक्रांत उस भावना की पुकार थी जो बाहर की ओर राह न पाकर
भीतर की ओर स्वप्न-सोपानों पर आरोहण करती हुई युग के अवसाद तथा
विवशता को वाणी देने का प्रयत्न कर रही थी और साथ ही कल्पना द्वारा
नवीन वास्तविकता की अनुभूति प्राप्त करने की चेष्टा कर रही थी।
पल्लव की प्रतिनिधि रचना परिवर्तन में विगत वास्तविंकता के प्रति
असंतोष तथा परिवर्तन के प्रति आग्रह की भावना विद्यमान है। साथ ही
जीवनं की अनित्य वास्तविकता के भीतर से नित्य सत्य को खोजने का
प्रयत्न भी है, जिसके आधार पर नवीन वास्तविकता का निर्माण किया जा
सके । 'गुंजत काल की रचनाओं में जीवन-विकास के सत्य पर मेरा
विश्वास प्रतिष्ठित हो चुका ই।
सुंदर से नित सुंदरतर, सुंदरतर से सुंदरतम
सुंदर जीवन का क्रम रे, सुंदर सुंदर जग जीवन £
आदि रचनाओं में मेरा मन युगीन वास्तविकता से ऊपर उठकर स्थायी
वास्तविकता के विजय-गीत गाने को लालायित हो उठता है और उसके
लिए आवश्यक साधना को अपनाने की तैयारी करने लगता है। उसे
“चाहिए विश्व को नव जीवन' का अनुभव भी होने लगता है और वह अपनी
इस आकांक्षा से व्याकुल रहने लगा है ।
गुंजन में धीरे-धीरे मैंने अपनी ओर मुड़कर तथा अपने भीतर देखकर
अपने बारे में भुनगुनाना सीखा । अपने भीतर मुझे अधिक नहीं मिला ।
व्यक्तिगत आत्मोन््नयन के सत्य में मुझे तब कुछ भी मोहक, सुंदर तथा
महत्त्वपूर्ण नहीं दिखाई दिया । मैंने जीवन-मुक्ति के लिए छटपटाती हुई
अपनी जीवन-कामना तथा राग-भावना को “ज्योत्स्ना' के रूपक में अधिक
व्यापक, सामाजिक, अवेयक्तिक तथा मानवीय धरातल पर अभिव्यक्त करने
की चेष्टा कर व्यक्तिगत नीवन-साधना के प्रति--जिसकी क्षीण प्रति-
ध्वनियाँ “गूंजन में मिलती हैं - विद्रोह प्रकट किया और अपने परिवेश की
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