छान्दोग्योपनिषद रहस्य | Chhandogyopanishad Rahasya

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Chhandogyopanishad Rahasya by बलदेवदास बिड़ला - Baladevadas Bidala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ छान्दोग्यो पनिपद्‌ रदस्य । ~~ ~~ - - ~= - ~~~ = ~~ ~~~ ~ কস বিন ४ मन्न । तेनेयं . तरयी विद्या वर्त . ओमित्याश्रावयत्योपिति शंस त्योमित्युद॒गायत्येत्स्ये बात्तरस्यापचित्ये महिम्ना रसेन । (८१1 १। 5 )। खान्वय अर्थ । दि तेन ( उस भ्रणत्रसे ) इ यन्‌ ( यद्‌ ) चयो ( वेद्रयो ) विया ( ्रथज्ञानसाध्य अनुष्ठान ) चेते ८ चलता है ) ओमिति ( ओंका- रको उच्चारण कर ) आश्रावयति ( प्रैप देते हैं) ओमिति ( ओम इसी शब्दसे ) शंसति (शात्त्र पढ़ते हें) ओमिति ( ओंस इस शब्दसे ही ) उद्गायति (साम पढ़ते हैं) एतत्य (इस ) एच ( निश्वय ) अक्षरस्य ( अक्षरके ) अपचित्ये ( पूजा करनेंके लिए महिन्ना ( महत्वसे ) रसेंन ( रससे )। , सरलार्थ । वि इसी भ्रणवसे वेदोक्त यन्न यागादि चलते हें। यज्ञम भप; शस्व, स्तोत्र इसीसे चलते है किंवहुनां सत्र व्यवहार इसीके पूजनार्थ इसीके महत्वंसे ओर इसीके रससे होते हैं। भावार्थ | सच यज्ञ यागादि ओंकार दोसे किये जाते हैं। क्‍योंकि जितने ` सनन्‍्त्र और अन्यवाणी हैं सच ओंकारका स्वरूप हैं । और सबच- यज्ञादि ऑकार द्वी के पूजनके .लिये दै क्योकि परमातमा और: ओकारका अभेद है! .तथा यज्ञ करके आदित्य छारा बृष्टि द्वोकर ' मशः ऋत्विक्‌ आदिके आण बनते हैं, उससे मन्त्र कहना और क्रिया अज्लुछानका- सामथ्य, वनता है तथा अन्न बननेसे पुरोडाश-




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