धर्म्मप्रचारसोपान | Dharmmaparcharsopan

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Dharmmaparcharsopan  by विवेकानन्द - Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धम्सेप्रचारसोपान । [8] भेद है वहीं छुटाई घड़ाई है; जहां नाभ है वहीं सावसनामदप्विणा अजमाव है| इस कारण अपना जायसनातनधघमं केवल घम्मनामसेद्दी अभिद्ति होने याग्य है। चा हे संज्ञा रखने ऊे अर्थ इस धर्ममा गेका' सनातनघमं, हिन्दूधम,वैदिरुधम आदि कुछ ही नाम रख लिया जाय परन्तु इस सर्वव्पापक, सम- दी, झनादि, अनन्त, महान श्रेर सवेजीव हित- कारी अपीरुपेय धर्ममा्गका' नाम केवल “घम” ही हासक्ता है, इस चिचारमें सन्देह नहीं है । शास्त्रोंमें लिखा है कि सत्ययुग में धर्म चतुष्पाद्‌ होगा, चेतायुगमें घर्म चिपादही रह जायगां, पुनः द्वापरयुगमं घमकी न्यूनता होानेके कारण धर्म द्िपादु ही रहेगा और कलियुगमें काल-सा हात्म्यके कारण घर्म इतना घट जायगा कि केवल उसका एकमात्र पाद रह जायगा। महा भारंतके घारयुड्के पीछे छधात्‌ प्रायः पांच सहस्र चघ हुए तवसे कलियुग प्रकट हुआ है। यह घमके एक पाद रहने का ही कारण है कि धमकी आदिश्यूमि भारत- भमिमें इस पांच सहस््र चप के भीतर ही अनन्त घधम- विज हे गये श्ार हो रहे हैं; भारत-दमदान- कारी महा भारतका महा युद, तद्नन्तर नाना राज-




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