आत्म तेज | Atam Tej

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
724 KB
कुल पष्ठ :
36
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रास्म-तेज
शिक्ये
शिवकोटी या মৃতা वहाँ, जनता का दुख सुनने-बाला ।
शिव-भक्त, न्याय-पथ का पंथी, पीता था प्रेम-सुधा प्याज्षा ॥
शिव-समंदिर कितने ही उसने नयनाभिराम बनवाये थे ।
उनकी विशालता के ऊपर भण्डे शिव के फदराये थे॥
बस, उन्हीं मन्दिरों के समीप, सद्दसा स्वामी जी आ-निकले ।
देखा खो द्रश्य खाथे-साधक, तो भूल गये संकट पिले ॥
लग गये सोचने--“कामयाब कोशिश मेरी ज़रूर होगी।
दुश्व्याधि अन्त पालेगी अब, सारी तकलीफ दूर होगी ॥”
यह तो वे सोच रहे मन में, थी दृष्टि घुमती इधर-उधर ।
यहू देवयोग की बाल एक, घटना क्रम पर जा पढ़ी नज़र ॥
शिवमन्दिर के द्वार से, भोजन का सामान।
पूज्जक.ग्ण ले जा रहे, अपने-अपने थान ॥
शिव-पिरडी पर जो सरस-मधुर, नेवेय चदाया जताया,
बह सभी, भोग लग चुकने पर, तकसीम कराया जाता था ॥
षटरस, य्यंजन मोदक मन, नित राज-लोक से घाते थे।
शिवजी के सन्मुख रख करके सब पूज*-गण ले जाते थे ॥
यह হয ইজ स्वामीजी के मन में, यह विचार आया |
“इतना भोजन मिल्न जाने पर हो सकती है निरोग-काया ॥'
कह उठी भूख-रेमन, मूरख ! बदती-गंगा में कर धोले |!
बस, तभी दो-क्रदम आगे बढ़, गुरुवर उपासकों से बोले ॥
“शिब-मक्तो ! क्या जानते हो पूजां का अथे।
प्रभु-पूजक में चाहिये क्या होनी सामर्थ !
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