विज्ञान | Vigyan

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Vigyan  by प्रो. हीरालाल निगम - Prof. Hiralal Nigam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विज्ञान ] हमारे मित्र कीड़े | श्रप्रोल १९५२ हल एफ एक 0 9३१४४ ९९%] ছু রণ ९४१ শ শা ९ ९०१०१२१ १ १०77 + १११7 १५४१474 जक द्रस्फोयों से प्राप्त होने वाले पदार्थों में टेनिक आम्ल (1211010 82८10 ) मुख्य है जिससे निकोटीन टेनेट (1601016 11900816} नामक कौटनाशक दवा बनती है । ठेनिक श्रम्त से चमड़ा भी सिभाया (51- 712) जाता है। कहीं कहीं पर द्वुस्फोटों से निकलने वाले रंगों का भी उपयोग होता है। बहुत सी अच्छी स्थायी स्‍्याहियाँ भी द्र॒स्फोटों ही से तय्यार की जाती हैं। अठारहवीं शताब्दी में क्रांस में, द्रस्फोटों को कई प्रकार के ज्वरों को रोकने के लिये उपयोग किया जाता था परन्तु श्राज कल इनका भेषजक महत्त्व कम हो गया है | आहार के लिये उपयोग किये जाने वाले कीड़े-- कुछ कीड़े मनुष्य के आहार भी हैं, जिनमें टिड्डे (27888110101067:8) , तेलपडवा या तैलबोट ((/0८1:- 1709८168), भींगुर (00८176(8) और टिड्डियाँ (10८7818) मुख्य है। कहीं-कहीं पर तैलबोट बहुत स्वा- दिष्ट समझा जाता हैं | टिड्डु और टिड्डियाँ भी काफ़ी स्वा- दिष्ट समभी जाती हैं ओर इनका, विशेषकर टिह्डियों को खाने का प्रचलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा हैं। ग्रीस के निवासी टिड्डियों को खल में कूट कर आटा बनाते हैं। अमेरिका के रेड इंडियन कीड़ों की बड़ी बढ़ी सूड़ियों (८2.161101118.18) को सुखा कर बाद में उपयोग करने के लिये रख लेते हँ । कौड्य के रक्त म लवण (821४) की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होने के कारण वे अधिक पसंद किये जाते हैं। इसके अतिरिक्ति नमक की कमी के स्थानों पर कुछ अंश तक वे नमक की कमी भी पूरी कर देते हैं । आओषधि के लिये उपयोग किये जाने वाले कीड़ै-- अनेकों कीड़े स्वयं या उनके रस अथवा उनके बनाये पदार्थ छ्नौषधि के रूप में उपयोग किये जाते हैं। मेलायडी (16107086) वंश के माइलेव्रिसि (1180118) नामक फूलों को खाने वाले फफोले डालने वाले गुबरेतते (0118167 6611०) को सुखा कर उससे केन्थरिडीन नामक दवा तैयार की जाती है । कैन्थरिडीन मृत्रजनन संहति ( धा४7026४7119) 8781877) के भीतरी रोगों को अच्छा करने के काम आती है। बालों के धोने में भी इसका उपयोग होता है परन्तु यह हानिकर सिद्ध श्रा है। एपिस (81018) नामक दवा जो डिप्थीरिया, स्कारल्ेट ज्वर सी आदि रोगों को श्रच्छा करने के काम आती है मधुमक्खी का श्ल्कोहल द्वारा निक्राला हुआ रस होता है। घावों में विद्यमान जीवाशुओं तथा सड़ी गल्ली ऊतियों को सापः करने के लिए घरों की मक्ली श्रादि के समूह (1211016/& ) के वोल्फारशिया (ए011118]17118)नामक मकल। के जातक (1112008) उपयोग क्रिए गए हैं.) अभी हाल ही में यूरिया (770४) से कुछु दबा तैयार की गई हैँ जिसने अरब वोल्फारशिया के जातकों की जगह বীলীই। परागण मे सहायता करने वाज्ञे कीडं 1201111. 20128) --इस श्रेणी में मधुमक्खियाँ और तितलियाँ सम्मिलित हैं। कीड़े जब फूलों पर बेठकर उसका मक्ररन्द (71 02009) चूसते या पराग खाते हैं तो उनके शरीर पर पराग कण लग जाते हैं जो दूसरे फूलों पर बेठने पर भाड़ जाते हैं श्र कुछ फूल के मादा अंगों पर भी पढ़ जाते हैं जिससे फूलों का परागण हो जाता है| मटर, गूह, श्रंजीर तथा पीपल आदि के फूज्ञ तो बिना कीड़ों के परागित ही नहीं हो सकते । परागण होने के उपराब्ध फूल के नर कोश उसके मादा कोशाश्रों से मिलते हैँ जिसके फलस्वरूप फल व बीज बनते हैं| परागण न होने पर फल्न व बीज नहीं बन सकते | फल्लों व बीजों का कृषि में कितना महत्व है यह बताने की आवश्यकता नहीं | इतना ही कहना पर्यास होगा कि फल व बीज न होने पर संसार की अधिकांश जनसंख्या को भूखों मरने के अलावा श्रौर कोई रास्ता ही नहीं रह जायगा । भगी के रूप में लाभ पहुँचाने वाले कीड़े (808- १९0९९78) लोगों का ऐसा अनुमान है कि मंगी कीड़े ही आगे चलकर जीवित कीड़े आदि खाने लगे और हिंसाजीबी (]07९090078) तथा परजीबी (1 ४1४. 81088) बन गये । घरेलू मक्खियों के समूह (1)1|)161/:8) [ १६ | |




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