भारतीय संस्कृति का विकास | Bhartiya Sankriti Ka Vikas

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आर के वर्मा - R K Verma

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रीता रावत - Reeta Rawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, भारतीय संस्कृति-अभिप्राय;स्वरुप एवं रचना 11 दुख:दायक होते हैं | मनुष्य अपने कर्मों का अच्छा या बुरा फल भोगंने के लिये ही जन्म-मरण के चक्र में पड़ता है । भारतीय मनीषियों का पुनर्जन्म में विश्वास था | - उनकी मान्यता थी कि अच्छे. ओर बुरे कर्मो के अनुसार ही प्राणी उत्तम ओर नीच ,, ` योनिरयो मे अथवा कुल में जन्मं लेता है । कर्मफलं को भोगने के लिये जीव असंख्य --योौनियौँ मै जन्म ग्रहण करके.तव तक भटकता रहता दै जब तक वह मोक्ष प्राप्त न . करलें । मोक्ष प्राप्ति या जन्म-मरण के चक्र.से मुक्ति भारतीय संस्कृति मेँ লালন जीवन का परम लक्ष्य है [ अतः मोक्ष के लिये अच्छे-बुरे कर्मो का त्याग अनिवार्य है] परन्तु मनुष्य के लिये कर्मो का सर्वथा त्याग असम्भव ओर अव्यावहारिक है । अतः भारतीय संस्कृति में. कर्मों के त्याग की- अपेक्षा कर्मो से प्राप्त होने वाले फल की अभिलाषा के परित्याग को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया गया है | कर्मफल और पुनर्जन्म के इस सिद्धान्त ने भारतीय संस्कृति ओर समाज मे सदाचार को प्रोत्साहित किया दै । इन धारणाओं के कारण ही जनसामान्य उत्तम ओर श्रेष्ठ कर्मो कीओर ` रवृत हुये दै । (7) सर्बांगीणता- भारतीय संस्कृति का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक ই | वंह किसी ` .सीमा मे आवद्ध नहीं है । व्यक्ति. का सर्वागीण विकास इसका मूल लक्ष्य रहा है | सर्वागीणः विकास का तात्पर्य लौकिक ओर पारलौकिक दोनों प्रकार की उत्रति से है। भारतीय संस्कृति में .जीवन की शारीरिक, मानसिक ओर आध्यात्मिक तीनों ही शक्तियों को सबल बनाने की प्रेरणा दी गई है | भारतीय संस्कृति में आदिकाल से ही . शरीर, मन ओर आत्मा का सामंजस्यपूर्ण विकास जीवन का परमलक्ष्य माना गया है, अतः इसमें प्रतिपादित मानव जीवनः के चार. पुरूषार्थं भारतीय संस्कृति के आधारस्तम्भ है ।. प्राचीन भारतीय मनीषियो ने व्यक्ति की सम्यक्‌ उत्रति ओर सुख-समृद्धि के लिये चार पुरूषार्थो-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की आयोजना कीः है। इन चार पुरूषार्थों की प्राप्ति ही मनुष्य के जीवन की सम्पूर्ण प्रवृत्तियों ओर कार्य-कलापों का लक्ष्य माना गया है । इसके अनुसार मनुष्य को धर्म का पालन करते हुये अर्योपार्जन करना चाहिये ओर धर्म से उपार्जित अर्थ से सांसारिक भोग्य पदार्थो का उपयोग करना च्राहिये । धर्म, अर्थ ओर काम की प्राप्ति के तदन्तर मोक्ष _ प्राप्ति को प्रयत्न ही मानव जीवन का परम लक्ष है } वस्तुतः भारतीय समाज में प्रणीते चार आश्रमो की व्यवस्या इन पुरूषार्यो की प्राप्ति का ही मार्ग है । ब्रह्मचर्य और गृहस्थ आश्रम में व्यक्ति प्रथम तीन पुरूषार्थो-धर्म, अर्थ और काम को प्राप्त करता है | तदन्तर वानप्रस्थ आश्रम में वह मोक्ष की ओर प्रवृत होकर संन्यास - आश्रम में वह मोक्ष को प्राप्त करता है | इसी पुरूषार्थ व्यवस्था के कारण भारतीय संस्कृति अन्य संस्कृतियोँ से अपनी विशिष्टता रखती है । ` ` । (8) सहिष्णुता- भारतीय संस्कृति सहिष्णुता के आदर्श का अनुपम उदाहरण है। आरतीय संस्कृति में: वैचारिक स्वतन्त्रता को पूर्ण मान्यता दी गई है | इसीलिये यहा अनेक आस्तिक ओर नास्तिक विचारघाराओं का विकास हुआ हे | यहाँ নতি ति अथ अनेक ললাল্লহী সক ২ হ্বান, जैन, बौद्ध, .चार्वाक, भागवत, शैव आदि अनेके मत-मतान्तरों को. ... রা भ € `




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