चिरंजीलाल जी बड्जाते | Chiranji Lal Badjate
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“-१७-
चेष्ाओों पर लक्ष्य न देकर अपने सुधार की चिता करता है, जो अपने-आपको उद्र
तप और त्याग आदि के गर्व से उद्धत नहीं बनाता, वही भिक्तु है।
१०३. भन्ते ! कैसे चले १ कैसे खड़ा हो ! कैसे बेंठे ? कैसे सोये ! कैसे मोजन
करे! कैसे बोले १-जिससे पापकर्म का अन्धन न हो ।
१०४, आसयुष्मान् ! विवेक से चले, विवेक से खड़ा हो, विवेक से चेठे,
विवेक से सोये, विवेक से भोजन करे ओर विवेक से ही बोले, तो पाप-कर्म का
बंधन नहीं हो सकता |
१०५. प्रथम ज्ञान है, पीछे दया | इसी क्रम पर समग्र त्यागी वर्ग अपनी
संयम-यात्रा के लिए ठहरा हुआ है | भला अज्ञानी मनुष्य क्या करेगा ! श्रेय
तथा पाप को वह कैसे जान सकेगा १
१०६. म समस्त जीवों से क्षमा माँगता हूँ और सब्र जीव सुझे भी क्षुमा-
दान दें | सब जीवों के साथ मेरी मैत्नी-इत्ति है, किसीके साथ मेरा बैर नहीं है।
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