चिरंजीलाल जी बड्जाते | Chiranji Lal Badjate

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Chiranji Lal Badjate by जमनालाल जैन - Jamnalal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“-१७- चेष्ाओों पर लक्ष्य न देकर अपने सुधार की चिता करता है, जो अपने-आपको उद्र तप और त्याग आदि के गर्व से उद्धत नहीं बनाता, वही भिक्तु है। १०३. भन्ते ! कैसे चले १ कैसे खड़ा हो ! कैसे बेंठे ? कैसे सोये ! कैसे मोजन करे! कैसे बोले १-जिससे पापकर्म का अन्धन न हो । १०४, आसयुष्मान्‌ ! विवेक से चले, विवेक से खड़ा हो, विवेक से चेठे, विवेक से सोये, विवेक से भोजन करे ओर विवेक से ही बोले, तो पाप-कर्म का बंधन नहीं हो सकता | १०५. प्रथम ज्ञान है, पीछे दया | इसी क्रम पर समग्र त्यागी वर्ग अपनी संयम-यात्रा के लिए ठहरा हुआ है | भला अज्ञानी मनुष्य क्‍या करेगा ! श्रेय तथा पाप को वह कैसे जान सकेगा १ १०६. म समस्त जीवों से क्षमा माँगता हूँ और सब्र जीव सुझे भी क्षुमा- दान दें | सब जीवों के साथ मेरी मैत्नी-इत्ति है, किसीके साथ मेरा बैर नहीं है।




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