सम्पत्ति का उपभोग | Sampatti Ka Upabhog

Sampatti Ka Upabhog by दयाशंकर दुबे - Dayashankar Dubeyमुरलीधर जोशी - Muralidhar Joshi

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

दयाशंकर दुबे - Dayashankar Dubey

No Information available about दयाशंकर दुबे - Dayashankar Dubey

Add Infomation AboutDayashankar Dubey

मुरलीधर जोशी - Muralidhar Joshi

No Information available about मुरलीधर जोशी - Muralidhar Joshi

Add Infomation AboutMuralidhar Joshi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सम्पत्ति का उपभोग पहला त्वार्य उपभोगं का महत्व श्रथंशास्र के पाच मुख्य विभागों में से एक विभाग (उपभोगः ই | साधारणतः उपभोग का मतलब क्िष्ठी वस्तु का भोग या सेवन करना होता ই | परन्तु श्र्थशाख्र मै इस शब्द का प्रयोग कुछ विशेषता से किंया जाता है। उपभोग का अर्थ सेवां और वस्तुओं के उस भोग से है जिससे उपभोक्ता की तृप्ति हो। श्रगर किसी वस्तु के सेवन से उपभोक्ता को सतोष न हो, तो अरथंशास्र की दृष्टि से ऐसे भोग को उपभोग नहीं कह सकते । झगर हम एक रोटी का टुकड़ा श्राग मे डालकर जला डाले तो साखारिक दृष्टि से उस वस्तु का उपभोग हो चुका; क्योकि वह और किसी काम की न रही | परन्तु अथशाशञ्न की दृष्टि से उस वस्तु का उपभोग नहीं हुआ; क्योंकि उससे उपभोक्ता की तृप्ति नदीं हई । दरएक वस्तु में कुछ-न-कुछ उपयोगिता रहती है। जब हम उस उपयोगिता का इस प्रकार प्रयोग करें जिस प्रकार हमको उससे तृप्ति या संतोष हो, तभी हम वास्तव में उस वस्तु का उपभोग करते हैं। रोगी का ठुकड़ा खाने या आग में




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now