जीवन - साथी | Jiivan Saathi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यकाम विद्यालंकार - Satyakam Vidyalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रेण की रोर पत्र २
{.6६ पऽ 10४८ 00€ 2101067; 107 10৮
19 (00 200 0০ 19 10৮৪---13101,
प्रेम ही ईश्वर है ओर ईश्वर ही प्रेम है ।
[ स्वतन्त्रता से भी अधिक मुल्यवान--प्रेम का बन्धन; जीवन की
बिखरी हुई বাই) আল কই বদ से जीवन में प्ररणा आती है; प्रेम की
डोर में बचे दो पंछी; पूखंता न मनुष्य का श्रादश दै न
संभव ही दे ]
प्रिय कमला,
जितनी आसानी से में विवाहित जीवन के साथी की बात
लिख गया था, उतनी आसान नहीं थी वह--यह बात मुझे
तुम्हारा पत्र मि्तते ही याद आगई। उसमें भी शंकायें हो सकती
हैं। तुमने लिखा है--
“विवाद के बाद. स्ली का जीवन गृहस्थी के कार्सो में इतना छल
जाता दे कि उसे अपना मानसिक विकास करने का अवसर नहीं
मिलता । उसकी अआज़ादी पूरी तरह छिन जाती ই।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...