पूर्व - आधुनिक राजस्थान | Purv - Aadhunik Rajasthan

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Purv - Aadhunik Rajasthan by रघुवीर सिंह - Raghuveer Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १८ ) को एकत्रित करने के लिए अब तक राजस्थान में कोई भी प्रयत्न नहीं किया गया । कई युगो की निरन्तर खोज एवं गंभीर अध्ययन के बाद ही इन नए आदर्शो के अनुसार राजस्थान का इतिहास लिखने का कुछ भी प्रयास करना संभव हो सकेगा । पुनः तहेशीय राजनैतिक घटनावली की ठीक-टीक प्रामाणिक परम्परा निश्चित किए बिना न तो ऐतिहासिक खोज का यह कार्य ही सरलतापुवंक आगे बढ़ सकता है और न॒नये दृष्टिकोण से विगत ऐतिहासिक घटनाओं में किसी भी प्रकार का यथार्थ पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित करना या उसके कारणों और परिणामों की ठीक-ठीक व्याख्या कर सकना ही किसी प्रकार रक्य हौ सकेगा । भावी इतिहासकारों के लिए एसी ही प्रामाणिक घटनावली को निश्चित करने का इन भाषणों में भरसक प्रयत्न किया गया है । इस पूर्व-आधुनिक कालीन राजस्थान के इतिहास में भी कई एक ऐसे काल हें जिनकी ऐसी क्रमबद्ध घटनावली की प्रामाणिक परम्परा को निश्चित करने का अब तक कोई भी प्रयत्न नहीं किया गया था; या तो उन.पिछले इतिहासकारों को तदर्थ अत्यावश्यक आधार-सामग्री प्राप्य नहीं थी, या उनके लिए ऐसा कर सकने का कोई समुचित अवसर ही नहीं आया था । ऐसी न्यूनताओं को पूरा करने में उन विशिष्ट कालों की विवेचना का विस्तार बढ़ जाना अनिवार्य हो गया, जिससे विभिन्न कालों के विवरणों में यदा-कदा सापेक्षिक असमानता आए बिना न रही । सदियों की राजनेतिक दासता एवं विदेशियों के सांस्कृतिक तथा धामिक एकाधिपत्यपूर्ण साम्राज्यों का भारत में अन्त हो गया हैं । स्वतन्त्र सुसंगठित जनतंत्रीय शक्तिशाली भारत की स्थापना के साथ ही राजस्थान-वासियों के राजनैतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि-कोषों




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