देश दर्शन | Dash Darshan
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
474
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
कोई ६० वर्प पटले देदखी काठेजके पंडित धरम्मनारायणजीने इस विषय पर
दो किताबें उदूसें लिखीं । रावसाहब विश्ववाथ नारायण और पंडित कृष्णशाखीने
दो एक पुस्तकोंका अनुवाद मराठीमें करके दक्षिणमें इस शाज्लनका प्रचार किया ।
गुजराती आदि और और भाषाओंमें भी इस विषय पर कई पुस्तकें प्रकाशित
हुई । हिन्दीमें सबसे पहले सन् १९०७में पंडित गणेशदत्त पाठकने एक छोदीसी
पुस्तक निकारी । वादको हिन्दीके सुप्रसिद्ध ेखक पण्डित महावीरप्रसाद द्विवे-
दीने अपना महत्त्वपूर्ण सम्पत्तिशात्र प्रकाशित किया। प्रो ° वारुङृष्णजीने भी
इसी विषय पर एक उत्तम पुस्तक लिखी। कोई दो वर्ष पहले प० गिरिधर कर्मानि
मिसेस फासेट एलएल डी के अर्थशास्लष॒का अनुवाद लिखा। मतलूव यह कि क्रमशः
हिन्दींमं भी इसका प्रचार होने लगा 1
सम्पत्तिशाघ्नका विषय बहुत ही गहन ओर कठोर ই। इस शात्रका सम्बन्ध
व्यापार ओर राज्य-व्यवस्थासे बहुत अधिक है 1 सम्पत्तिशास्रके विचारम और
হযাজীন্দা শী काम पढ़ता है । उनकी मददसे इस श्षाघ्रके सिद्धा निधित किये
जाते हैं। नीतिशात्न, जीवनशास्र, जनसंख्याशात्न आदिकी मदद लिये बिना
इस शाल्रका काम नहीं चरु सकता 1 सम्पत्तिशाघ्रका सम्बन्ध जनसख्यासे दै
और जनसख्याका विषय बढ़े महत्त्वका है। भारतमें इस विषय पर ध्यान आकर्षित
करानेकी बहुत वडी आवश्यकता हैं। जितनी भूख है उससे यदि हम अधिक
खायेंगे तो हमें वदहजसी हो जायगीं और हम बीमार पढ जायेंगे । यदि माली
पेड़-पत्तोकी काट-छोंट न करे तो बहुत जल्द ही खूबसूरत वाग जन्नलकी शक-
लसे बदल जाय और वहों शोभा और शातिके स्थान पर ऊुरूपता ओर
अशातिका दोरदौरा हो जाय । इसी तरह यदि किसी जातिकी जनसख्या एक
नियत सीमाका उल्लघन कर जाती है, तो उस जातिमे अनेक बुराइयोंकी इद्धि
दोने लगती है और उस जातिका अध पतन होना प्रारभ हो जाता है। प्रकृतिने
हर वातके किए एक नियम, एक सीमा वना रक्खी है । उस नियमकरो न जानकर
उसकी नियमित सीमाका उलछघन करना ही प्रहृतिका नियम तोड़ना है। और यह
बतानेकी आवश्यकता नहीं है कि हर अवस्थासे प्रक्ृति-नियमक्े प्रतिकूल काम कर-
नेसे अनेक वाधायें और उपद्रव आ ख्डे होते दै ।
प्रसिद्ध अंगरेज लेखक ओर तत्त्ववेत्ता माल्यस साहवने जनखल्या-विपय पर
खूब विचार करके सन् १७९८ ई० में जनसंख्याके नियम पर एक निवंधावली
(85589 ০০. 00৩ एग्ाएए6 ० 9०एणै४० ) लिसी | उसमें उन्होंने
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