मूकज्जी | Mookajji
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वैचारों ने किसी का क्या विगाड़ा है। बुछ सा लेते, दो घड़ी खुश रहते, बस ! ”
नागी को आँखों से आँसू की बूँदें टपकती दिखी । पँसे उसने फिर भी नहीं लिये।
स्वाभिमानी ग्ररीबे के सहज दर्द के साथ बोली, “बच्चों के लिए भी दूसरों वा
पैसा मुझे नहीं चाहिए। अपनी झक्ति-मर मेहनत करूंगी । जो मिलेगा उसी से
इनका पेट पातूंगी । कल को वड़े होकर ये भी कही दया मॉँगने नहीं जायें गे, अपने
परिश्रम पर जियेगे।” बच्चों को लेकर जाते-जाते इतना और बोलो, तुम वदे
घर के लोग हो। आजीमाँ तो देवता ही है । तो भी किसी की षा मुभे नहीं
चाहिए | तुम बुरा मत मानना 1”
मेरा गला भीग आया । नागी से कहा, “नहीं, बुरा क्या मानूगा । एक तरह
से तुम ठीक ही तो कहती हो । तुम्हारा साहस,देखकर तो, सच आश्चर्य होता है ।
শিতবিতানী हुई-बी बोली वह, “नहीं मालिक, मैं तो एक दिखण्डी की तरह हूँ ।
मैं नहीं समभा उसका भाव तो उसने बताया, “यक्षगान के प्रसंग में आचाय भीप्म
के सामने खड़े शिसण्डी की तरह ही मैंने भी हठ पकड़ी है मालिक ! मैं उसे छोड़ने
वाली नहीं । अपनी मेहनत से, अपना पैठ काट-काटकर, बच्चों को सयाना बना+
ऊँगी। फिर इन्हे उसके सामने खडा करके कट्ूेंगी, 'लो, इन्हे देखो और पहचानो,
और कही लाज-द्र्म बची हो तो चुल्लू-भर पानी में डूब मरो !” मैं भूलूंगी
मदी 1
मैं कुछ सोच में पडा। भीतर-भीतर ज॑से घवरापाभी। नामीसे बोला,
“नुम्हारी वात मेरी समझ में नही आयी। मुमसे यह सब क्यों कहती हो ? मैं तो
थहता हूं, विद्यार्यी हूं अभी 1 उसने स्पष्ट किवा,“नटी मानिक, तुम्हारे निए कुट
नहीं कहा मैंने । पर जो कहा है मैंने वह अपने मामा को भुना देना। बस। बह
समझ जायेंगे। इसीलिए तुमसे कहा है।””
और नागी बच्चों को लिये हुए वहाँ से चली गयी ।
ऐसा लगा मानो शिखण्डी का शाप मुझे भी लग गया है। नागी की बातें
सुनकर मेरा जी मसोश्त उठा । मेला देखने कौ सारी इच्छा वहीं वु गयी! मन
मर गया। रह-रहकर ऐसा लगता जैसे कही कुछ भूल कर बैठा हैं ।
उसड़्ा-उसढा-्सा घर आया और आजीरम्मां को देखते हो वोला, “आजोमां,
कया जाने क्या भाज जी अच्छा नही लगता । चलो, वाहर चबूतरे पर बेठें ।”
आजीमा की बूढ़ो आँखें मेरी तरफ को उठी । मेरी वेचेनी भाँपते उन्हें दो
सणभी नदी लगे शायद 1 बोली, “क्यों, ऐसे क्यों हो रहे हो? आज तो वडा
अच्छा दिन है, त्योहार ই)”
भेरी मासी खिन्नता उमड़ पडी । जव से उम दुअन्नी को निकालकर आजी-
माँ की हथेली पर रखते हुए कहा, “आजीमाँ, इस दुअन्नी के कारण मुझसे वडी
भूल हो गयी है आज । जिसे देने लगा था उसने ली भी नहीं और ऊपर से, उनटे,
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