संक्षिप्त आत्म - कथा | Sankshipt Aatm - Katha

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Sankshipt Aatm - Katha by महात्मा गाँधी - Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हाई स्कूलमें ও के समान होने के विचार उठते । श्रवणकी मृत्युपर उसके माता- पिताका विलाप अ्रब मी याद हैं | उस ललित छुंदको मेने बजाना सौख लिया था | मुके बाजा सीखनेका शोक़ था और पिताजीने एक बाजा ला भी दिया था| इसी समय कोई नाटक-कंपनी आई और मुझे उसका नाटक देखने- की इजाज्ञत मिली | इसमें हरिश्चंद्रकी कथा थी | यह नारक देखने- से मेरी तृप्ति नहीं होती थी | बार-बार उसे देखनेको मन हुआ करता; पर बार-बार जाने तो कोन देता ? जो हो; अपने मनमें भैने-इस नाय्कको सेकड़ों बार दुहराया होगा । हरिश्चंद्रके सपने आया करते | यही धुन लगी कि हरिश्चंद्रकों तरह सत्यवादी सब क्‍यों न हों यही धारणा होती कि हरिश्चंद्र जेसी विपत्तियां भोगना और सत्यका पालन करना ही सच्चा सत्य है। मेने तो यही मान रक्‍्वा था कि नाटकमें जैसी विपत्तियां हरिश्चंद्र पर पड़ी हैं, वेसे ही वास्तवमें उसपर पड़ी होंगी | हरिश्चंद्र के ढुःखोंको देखकर, ओर उन्हें याद करके में खूब रोया हूं।आज मेरी बुद्धि कहती है कि संभव है, हरिश्चंद्र कोई ऐतिहासिक व्यक्ति न हों; पर मेरे हृदयम तो हरिश्चंद्र ग्रौर श्रवण श्राज मी जीवित हैं | में मानता हूं कि आज भी यदि मैं उन नाठकोंको पढूं तो आंसू आये बिना न रहें | रे हाई स्कूलमें जब मेरा विवाह हुआ तब में हाईस्कूलमें पढ़ता था मेरे साथ मेरे और दो माई भी उसी स्कूलमें पढ़ते थे । बड़े भाई बहुत ऊपरके दरजेमें थे और जिन भाईका विवाह मेरे साथ ही हुआ था, वह मुभसे एक दरजा आगे थे | विवाहका परिणाम यह हुआ कि हम * दोनों भाश्योंका एक साल बेकार गया | मेरे भाईको तो और भी बुरा परिणाम লীহালা पड़ा । विवाहके बाद उन्हें स्कूल छोड़ना ही पड़ा |




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