भारत ओर अफगानिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में एक अध्ययन | Bharat Or Afganistan Antarrashtriya Sambandhon May ek Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
299 MB
कुल पष्ठ :
469
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)में निरन्तर सुधार हुआ है। किन्तु कुछ लम्बे समय से चली आ रही समस्याएं बनी रहीं; जैसे
फरक्का मँ जल प्रवाह को बढ़ाने, बंगलादेश के निकटवर्ती भारतीय प्रदेशों में बंगलादेशी लोगों
का बडे पैमाने पर घुस आना और भारतीय नागरिकों की सम्पत्ति से सम्बन्धित दावों के समाधान
का प्रश्न आदि।!
नेपाल
दक्षिण एशिया में सुरक्षा की दृष्टि से नेपाल भारत कौ सीमा का महत्वपूर्ण प्रहरी हे।
दोनों देशों के बीच भौगोलिक, सांस्कृतिक समानताएं है। तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार कौ स्थापना
के पश्चात् वहाँ चीन की गहरी रूचि भारतीय हितों के प्रतिकूल प्रतीत होती है! चीन के प्रभाव
से बचने के लिए भारत भूवेष्टित राष्ट्र नेपाल की विभिनन क्षेत्रों में मदद करता रहा है, जेसे-
कृषि, जलविद्युत परियोजनाओं, बांध परियोजनाओं तथा दैनिक उपयोग की वस्तुओं को रियायती
दरों पर उपलब्ध कराना आदि है। पारस्परिक सम्बन्धों की दृष्टि से तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन
अधिकारी ने भारत यात्रा पर बताया कि नेपाल अपनी धरती से भारत विरोधी गतिविधियाँ नहीं
चलने देगा, तथापि नेपाल मे विशाल देश भारत से घबराकर उसकी नीतियों के प्रति विरोधी
अभियान भी समय-समय पर चलते रहे हैं।
भूटान
भूटान दक्षिण एशिया में बसा व भारत की सीमा से लगा ऐसा पडोसी है जिसके साथ
सम्बन्धं मं प्रत्यक्षतः कभी कोई तनाव नहीं आया।” नेपाल की तरह ही भूटान के साथ भी
भारत परस्पर सूझ-बूझ व सद्भाव के साथ सहयोग के क्षेत्रों में विस्तार की कोशिशें करता...
रहा है।5 वह भूटान के विकास कार्यक्रमों में प्रचुर सहयोग व॒ अन्य उपयोगी सामग्री देता है। के
भूटान की सामरिक अवस्थिति का लाभ उठाने के लिए चीन ही नहीं, अमेरिका, रूस तथा अन्य
यूरोपीय राष्ट्र भी लालायित हैं। यदि भूटान को एकदम खोल दिया जाए तो वह भारतीय सुरक्षा
के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है। लेकिन एक सार्वभौम राष्ट्र को, जो कि संयुक्त राष्ट्र
संघ का सदस्य है, भारत एक सन्धि के आधार पर कितना नियन्त्रितं कर सकता है, यह प्रश्न
भी विचारणीय है।
11. वार्षिक रिपोर्ट, 1983-84, भारत सरकार दारा आकल्पित वे प्रकाशित, पृ. 4-5
12. कमार, सतीश, देखिए क्र. 8
13. वैदिक, वेद प्रताप, “भारतीय विदेश नीति, नए दिशा संकेत , (दिल्ली 1980), पृ. 35-36
14. वार्पिक रिपोर्ट, 1983-84, पृ, 5-6
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