दूरवीक्षा के सिद्धान्त | Doorviksha Ke Siddhant
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
419
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ दरवीक्षण के सिद्धान्त
आधारित था। किसी भी घटना-स्थल के दृश्य के ~ सेकण्डों के अन्तर पर फोटो
खींचे जाते थे और उन चित्रों को उसी गति से एक के पश्चात् एक-एक करके अनेक
दर्शकों के समक्ष परदे पर प्रक्षेपित किया जाता था। ये चलचित्र पहले मूक होते थे
तथा प्रत्येक पात्र द्वारा कही गयी बातों को प्रत्येक दशक को पढ़कर जानना पड़ता
था। इससे कुछ लोगों का ध्यान वास्तविकता से हट जाता था, जिसे प्राप्त करने का
ध्येय पहले तथा अब भी था। ध्वनि-पुनरुत्पादकों की शक्ति की कमी के कारण बोलते
चलचित्रों को बनाने के प्राथमिक प्रयत्न असफल रहे। छेखक को वह घटना स्मरण
है जब कि सन् १९१२ या १९१३ के रूगभग पहले-पहल बोलते चलचित्र प्रदर्शित
किये गये थे, जिनमें ध्वनि को फोनोग्राफ से उत्पन्न किया जाता था और साथ हे
साथ चछचित्र प्रदर्शित होते थे। ध्वनि और चलचित्रों को समकालिक करने का काम
हाथ से करना पड़ता था। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह कार्य केवल
वैज्ञानिक या शैक्षिक उत्सुकता का प्रदर्शन मात्र ही था; और सन् १९२८ या १९२९
तक व्यावहारिक रूप में बोलते चलचित्रों को व्यापारिक स्तर पर प्रस्तुत नहीं किया
जा सका) यहाँ पर यह् कहा जा सकता है कि विद्युत्-युक्तियो कै विकास के कारण
ही बोलते चलचित्रों का प्रादुर्भाव हो सका। इन युक्तियों से दो प्रकार से सहायता
मिखी--प्रथम, क्षीण विचुत्-धाराओं को प्रवधित करके इस प्रकार की शक्ति मे रूपा-
न्तरित करना जिसको नवीनतम विकसित गत्यात्मक .खाउडस्पीकरो द्वारा दर्शक-
समुदाय के समक्ष ध्वनि में परिणत किया जा सके; दूसरे, चलचित्रों की रीछ के किनारे
पर बने हुए ध्वनि-मार्ग से आने वाले परिवर्तनशील प्रकाश को प्रकाश-विद्युत् सेल'
पर डालकर श्रुत आवृत्ति की क्षीण विद्युत-धारा उत्पन्न करना। प्राकृतिक रंगों की
प्राप्ति के कारण आधुनिक चलचित्रों में लगभग वे सब लक्षण विद्यमान हैं जो
वास्तविक पुनरुत्पादन के लिए आवश्यक हैं; परन्तु इसमें भी एक कमी शेष रह
गयी है, वह है वस्तु की गहराई का आभास न होना। चित्र का पुनरुत्पादन
त्रि-देशिक नहीं होता। परन्तु २० सितम्बर, सन् १९४८ को ८ [८8
द्वारा इस कमी को दूर करने के लिए कुछ संकेत प्राप्त हुए हैं।
इन सब उद्नतियों के होते हुए भी मनुष्य की आकांक्षाओं की सन्तुष्टि नहीं हुई
है। चलचित्रों में काफी वास्तविकता है परन्तु ये सदेव पिछले दिन, पिछले सप्ताह
या वर्ष में हुई घटनाओं को प्रदर्शित करते हैं, न कि उन घटनाओं को जो दर्शकों
के देखने के समय हो रही होती हैं। इसी अन्तिम अभिलाषा की पूति के निमित्त
दूरवीक्षण या टेलीविजन का विकास हुआ।
1, 24100-€1८111८ ০611
User Reviews
No Reviews | Add Yours...