भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें | Bhartiy Etihas Ki Bhayankar Bhule

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्योंकि श्रठ्न स्वयं से ही मलत था, और पानी तो बाहर छलकता ही था। भारतीय मसध्यकालीन स्मारकों के सम्बन्ध में भी यही बात चरि- तार्थ होती है। भारतीय भध्यकालीन स्मारको के प्रति दुष्टिपात करने, उसका अध्ययत अथवा अन्वेषण करने में मूल धारणा यह रखना कि में सब जिह्दादियों द्वारा निमित हैं, यही तो गलती है । यही तो कारण है कि इस धारणा-व् असख्य असगतियाँ और पर्स्पर-विसेधी बातें, जमी मैं पहले ही ऊपर बता चुंका हूँ, सम्मुख प्रस्तुत हो जाती है। श्रपनी खोज को जारी रखने मे उस लघु-कथा से हृदय मे साहस बटोर, मैं उस समय स्तभित रह गया जब मुझे मालूम हुआ कि स्मारकों ते सम्बन्ध में सत्मालीन अथवा परवर्ती त्िथि-वृत्तो मे मी भ्रत्यन्त झनवस्थित वथा भ्रामक संदर्भ है । प्रस्पर-विरोधी बातों तथा प्रसग- जियो का पूर्ण समावेश है । इसके ग्रतिरिक्त, किसी कागज या ग्रभिलेख का ऐसा एक भी टकड़ा उपनब्ध नही है जो यह प्रदर्शित करता हो कि एक भी मकबरा, किला या मस्जिद बनाने का आदेश किसी जिह्दी सरदार था शासक ने दिया हो । भूख के अधिग्रहण अथवा भवन प्रारम्भ करने के सम्बन्ध में कोई भी रूपाकन, चित्राकत, कोई पत्र-व्यवहार था ग्रादेश, भेजी गयी सामग्री के लिये देयवक और अपनी सेवाओं के बदले में पावलियाँ कही भी उपलब्ध नहीं है । यथार्थत:, इतिहासवेत्ताओं और अ्स्वेषणकर्त्ताओं को बुरी तरह मासा दिया गया है। उनके लिखे सभी इतिहास और ग्रन्थ केवल सुनी- सुनायी बातो पर ही आधारित है। चूकि कोई भी भवन स्पष्ट रूप में अताडिदयों से मकबरे था भास्जिद के रूप मे उपयोग मे भ्राता रहा है, इसलिये उन लोगीं ने घारणा बना ली कि यह भवन सूल रूप में ही इस प्रकार बनाने के लिये भ्राज्ञापित था | यही तो वह भयंकर भूल है जिसने हमारे सभी पुरातत्वीय-अभिलेखों, ऐतिहासिक स्थलों के साम- पट्टो, पाठशालां और विद्यालयों में प्रयुक्त होने वाली ऐतिहासिक पाठ्य-पुस्तकों तथा ग्रस्वेषण-सस्यानों मे आात्मतुष्टि और सहज रूप में ही सन्दर्भ के लिए आधार बनायी गयी विद्वत्तापूर्ण पुस्तकों को विकृत कर दिया है । ७




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