आरोग्यका अमूल्य साधन | Arogya Amulya Sadhana  

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पंद्रह : संख्या अनेकगुनी बढ़ती जाती हैं; यह अत्यन्त - खेदका विषय है। जिस बारेमे अक जीता-नागता दृष्टान्त प्रस्तुतः करता हूं। सन्‌ १९३१-३२ में और सन्‌ १९५७-५८ में अहमदाबादकी आबादी, स्युनिसिपलिटीका बजट और चिकित्सकोंकी संख्या जिस प्रकार है । शहरकी आबादी सन्‌ स्युनि०का बजट. रजिस्टर्ड डाक्टर . । और वैद्य-हकीम ३,८२,००० १९३१-३२ ३०,८०,००० २००. (लगभग ) ९,७०,००० १९५७-५८ ২১০৩০ ০৪০০০ ৫০০ (लगभग) ये. हैं अहमदाबाद शहरकी भरगतिके आंकड़े ! जिनसे पता चलता है कि पिछले पच्चीस वरसमें शहरकी आबादी २५० .प्रतिशत . बढ़ी है। शंहरको स्वस्थ, सुखी ओर सुन्दर ` बनानेके लिये सफ़ाओ, सेंनिटेशन, सड़कें, नालियां, गुंजान आबादीके लिये नये आवास, छोटे- बड़े बाग आदि पर पच्चीस बरस पहले जो खर्चे होता था, वह रुगभग ९०० प्रतिशत बढ़ गया है। सुख अेव॑ स्वास्थ्य संबंधी म्युनिसिपकिटीके भिस ` बढ़े हओ खचैके अनुपातमे जनता पर आरोग्यके खर्चका बोझ कम होना चाहिये था, परन्तु अुस खर्चसें ४०० प्रतिशंतकी वृद्धि हुओ है; क्योंकि जनता पर निभनेवाले डांक्टरों और वैद्य हकीमोंकी संख्या चौगुनी हो गयी. है। जिसका क्‍या कारण ? प्रत्येक विचारशील व्यंक्तिके लिये यह प्रइन गंभीरतासे विंचारणीय ` है 1 जंनताका स्वास्थ्यं सुधरनेके. बजाय खूब बिगड़ा है, जो रोग थे वे अधिक तीन्न हओ ह गौर अनेक नये रोग पैदा हो गये. है; भिसं ठोस सत्यसे भला कोओ जिनकार कर सकता. ই? यह स्थिति ` केवर अहमदाबाद शहरकी ही नहीं है, परन्तु भारतके किसी भी छोटे-बड़े गांवकी, क़सबेकी और शहरकी जैसी ही- चिन्ताजनक दकाः है! - लिये जिम्मेदार कौन? जो संस्था या वर्गं यह कहता है.कि जच `




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