गीतावली [सातोकाण्ड] | Geetavali [Satokand]
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
307
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1 छ 3
तिथि यार नपत यह योग लगन सुभ ठानो। छल घल
गगग प्रसज्न साधु मन दसदिसि छिय हुलसानी ॥ २॥ बर-
पस् मुमन वश्वाय नगर नभ हर॒प न जात बयानों । জী
आम्तास रनिर्दांसनगेसहिं त्वों जनपद रजधानी ॥ ३॥ अमर
नाग स॒नि सनुण सपरिक्षन विंगतविषाद गलानी। मिले
सास रावन रजनीचर लंकर्सक अकुलानी ॥ ४॥ देवपितर
गुरुविप्र पूणि रूप दियेदान रूचि जानो। मुन्ति बनिता पुर-
भारि सुभासिनि सहसभांति सनसानी ॥ ४ ॥ पाड अधाड
असीसत निकसत लाचफनन भण दानी । यों प्रसन्न केकई
सुमिव्हिं हीहुमश्स भवानी ॥ ६ ॥ दिन दूसरे भूप भामिनि
दोड भई सुमंगणपानी। भयो सोहिलो सोहिलो भी जनु रृष्टि
सोडश्लि सानी ॥७॥ नाचत गायत भौ मनभावत सुप
सुवध अरधिकानी । देत सेत पिरत पष्िरावत प्रना प्रमोद
अघानी ॥ ८॥ गान निसान कौला कौतुक देषत दुनौ
सिष्टानौ । इरि विरेथि ४रपुर सोभाकुलि की सलपुरी लुभानो॥<
आनंद भवनिराजर॒वनी सब सागए कोपि जुडानी । आसिप
दैदे सराइएहिं सादर उम्ता रमा ब्रह्मानी ॥ १० ॥ विभवविज्ञास
वाद्ि दसरथको देपि न जिनहिं सोहानी। कौरति कुसल भति
जय रिघि सिघि तिनन््द पर सबे फीहानी ॥ ११ ॥ छठी वारहो
लोकबेदविधि करि मुविधानविधानौ । राम लपन रिपुद्मग
भरत घरे नाम ललित ग॒रन्नानौ ॥ २२ ॥ सुक्तत सुमन तिल
मोद वासि विधि जतन लंच भरि -घानी । सुपसनेष्ट सवं
दे दसरधद्टं परि पलेल थिर धानी ॥१३॥ भतुदिन
उदय उछाइ उसग जग घरघर आअवधकंडानी। तुलसी
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