गीतावली [सातोकाण्ड] | Geetavali [Satokand]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 छ 3 तिथि यार नपत यह योग लगन सुभ ठानो। छल घल गगग प्रसज्न साधु मन दसदिसि छिय हुलसानी ॥ २॥ बर- पस्‌ मुमन वश्वाय नगर नभ हर॒प न जात बयानों । জী आम्तास रनिर्दांसनगेसहिं त्वों जनपद रजधानी ॥ ३॥ अमर नाग स॒नि सनुण सपरिक्षन विंगतविषाद गलानी। मिले सास रावन रजनीचर लंकर्सक अकुलानी ॥ ४॥ देवपितर गुरुविप्र पूणि रूप दियेदान रूचि जानो। मुन्ति बनिता पुर- भारि सुभासिनि सहसभांति सनसानी ॥ ४ ॥ पाड अधाड असीसत निकसत लाचफनन भण दानी । यों प्रसन्न केकई सुमिव्हिं हीहुमश्स भवानी ॥ ६ ॥ दिन दूसरे भूप भामिनि दोड भई सुमंगणपानी। भयो सोहिलो सोहिलो भी जनु रृष्टि सोडश्लि सानी ॥७॥ नाचत गायत भौ मनभावत सुप सुवध अरधिकानी । देत सेत पिरत पष्िरावत प्रना प्रमोद अघानी ॥ ८॥ गान निसान कौला कौतुक देषत दुनौ सिष्टानौ । इरि विरेथि ४रपुर सोभाकुलि की सलपुरी लुभानो॥< आनंद भवनिराजर॒वनी सब सागए कोपि जुडानी । आसिप दैदे सराइएहिं सादर उम्ता रमा ब्रह्मानी ॥ १० ॥ विभवविज्ञास वाद्ि दसरथको देपि न जिनहिं सोहानी। कौरति कुसल भति जय रिघि सिघि तिनन्‍्द पर सबे फीहानी ॥ ११ ॥ छठी वारहो लोकबेदविधि करि मुविधानविधानौ । राम लपन रिपुद्मग भरत घरे नाम ललित ग॒रन्नानौ ॥ २२ ॥ सुक्तत सुमन तिल मोद वासि विधि जतन लंच भरि -घानी । सुपसनेष्ट सवं दे दसरधद्टं परि पलेल थिर धानी ॥१३॥ भतुदिन उदय उछाइ उसग जग घरघर आअवधकंडानी। तुलसी




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