आत्मरामायण | Aatmramayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
87
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जात्सराबादण | १३
देववाणी উই कि-( तथास्तु )अथात्-जसी
तमलागोंकी इच्छाहे,वेस्ताही होगा॥ ऐसे श॒-
सुनकर वोह कवं नरनारी आनन्दि
त ह्ये ¦ ओर दिन२ मरति श्रीरभचन्ड्रजी
ভর জানল जनकपरयं नित्थरये मगल शङ्क
नेलग ॥ तब क्रीरामचन्द्रजी और ठक्ष्स-
णजी विश्वामिन्रजीके साथ यक्ञशालामर सु
शोशित हुये । कि-जहॉ दडे २ प्रतापी सम्पूर्ण
राजा स्थित थे। तिससमय उस यक्षस्थान-
की ऐसी शोभा होगई कि-जेसे चन्द्रगाके
चारोंओर बृहस्पति आंदि नत्नञ्नोके स्थित
होनेसे रात्रीकी शोभा होजाती है। तहां
सव राजा अपने २ बल पराशको हार गये ॥
परन्तु-अहंकाररूप धनुष किसीसे भी नहीं
टटा ¦ सयोकि-अहकारने तै स्वको दवाही
रक्खा था ¦ अथात्-पक्याजामांकी হজ
छततीथी कि-हम बडी शूरवीर ओर प्रतापी
हैं। और धनषको हमहीं तोडेगे इससे हमारे
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