आत्मरामायण | Aatmramayan

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Aatmramayan by शंकरानन्दन जी - Shankranandan Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जात्सराबादण | १३ देववाणी উই कि-( तथास्तु )अथात्‌-जसी तमलागोंकी इच्छाहे,वेस्ताही होगा॥ ऐसे श॒- सुनकर वोह कवं नरनारी आनन्दि त ह्ये ¦ ओर दिन२ मरति श्रीरभचन्ड्रजी ভর জানল जनकपरयं नित्थरये मगल शङ्क नेलग ॥ तब क्रीरामचन्द्रजी और ठक्ष्स- णजी विश्वामिन्रजीके साथ यक्ञशालामर सु शोशित हुये । कि-जहॉ दडे २ प्रतापी सम्पूर्ण राजा स्थित थे। तिससमय उस यक्षस्थान- की ऐसी शोभा होगई कि-जेसे चन्द्रगाके चारोंओर बृहस्पति आंदि नत्नञ्नोके स्थित होनेसे रात्रीकी शोभा होजाती है। तहां सव राजा अपने २ बल पराशको हार गये ॥ परन्तु-अहंकाररूप धनुष किसीसे भी नहीं टटा ¦ सयोकि-अहकारने तै स्वको दवाही रक्खा था ¦ अथात्‌-पक्याजामांकी হজ छततीथी कि-हम बडी शूरवीर ओर प्रतापी हैं। और धनषको हमहीं तोडेगे इससे हमारे




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