महात्मा हंसराजजी | Mahatma Hansaraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मद्दात्मा हंसराज १५ सिद्धान्तों का पूण शान शेता रहता था। लाला ইভা के स्वभाव और आचरण ने सर्वेसाधारण फे मन कै मोहित कर दिया था और इसो कारण आपने इस विचित्र मने- हारि आकप णु ने महात्मा दंसराज जी के सन के भी अपनी: झार आकर्षित कर वैदिक धर्म तथा श्आय्यंसिदधान्तों केः पवित्र पक्के रंग में रंगना आरभ्म कर दिया । घस्तुगत्या यह रंग ऐसा चढ़ा कि अदग्यावचि सवाया खिलता गया भोर यथावज्लीवन सिला रहेगा चर इसी कारण महात्माजी सब से: अधिक कृतह लाला साई दास के दे शरीर यदि आप सब से अधिक फिसी पुरुष की प्रशंसा करते ই লী হনযাঁবাজী: साई दास की । निस्सन्देद हम यद यषां कषे विना नदीं रह्‌ सकते कि भ्राय्ये समाज लाएर में भद्यत्या हंसराज, भीमान लाला लाजपत राय स्वर्मौय पं० शुरुदत्त जैसे पुरुषों को सम्मिलित करना और उनफा लद्य समाज फी ओर आकर्षित फरना: जिससे संसार का मद्दाशुपकार झीर वैदिकः धमः का प्रचार हुआ किसका काम था यह उन्हीं स्वगंवासी लाला सा्ददास्तः का कि जिनके महांन परिश्रम श्रौर उयोग' से पेसे मदानादशं नवयुवक शणो फे ददेय मं धम का प्रम उत्पन्न हुआ कि जिन नवयुवकों ने पंजाब प्रान्त की शृतप्राय जनता में एक घार फिर से नवीन जीवन फा सझार कर दिलाया | ইজ की परीक्षा सें उत्तीण होकर गवनमेणद कालेज मे प्रविष्ठ दाना । सन, १८८० ई० श्रर्थाद्‌ १६ वर्षा फे आयु मं. महात्माः




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