गाथासप्तशती | Gathasaptasati
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
493
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६ )
करते हुए कि गाथासप्तशती की रचना वाद में हुई, दो बातों पर নিহান চাল
दिलाया है । पहली बात है, एक गाथा ( १1८९ ) में कृष्ण तथा राधा का
उल्लेख तथा दूसरी बात है, एक अन्य गाथा (३॥६१ ) में सप्ताह के एक दिन
'मखुलवार' का प्रयोग । डा० भण्डारकर का कहना है कि राधिका का सवसे
प्राचीन उल्ठेव ्न्चतन्वः मे दिखाया जा सक्ता है, जिसका संकलन ई°
पांचवी शताब्दी में हुआ है । उसी प्रकार तिधि दिखाने, तथा अन्य सवं-साधारण
कार्यों में दिवसों के प्रयोग का नवीं शताब्दी में प्रचछन हुआ, यद्यपि वुध-गरप्त
के एरण के अभिलेख में तिथिप्रयोग का सर्वप्राचीन उदाहरण मिलता है, अतः
हम लोग हाल” की गाथासप्तशती की तिथि छठी शताब्दी के प्रारम्भ में निर्धा-
रित करें तो अधिक चुट्पूर्ण न होगा (रा० गो० भण्डारकर स्मृति ग्रन्थ, पृ०
१८८ -८९ ) }
हाल सातवाहन के गाथासप्तरती के कृत्व तथा समय के सम्बन्ध में
उपयुक्त डा० भण्डारकर की अनुपपत्तियों का खण्डन डा० राजबली पाण्डेय ने
अपनी पुस्तक 'विक्रमादित्/ (१० १२-१४ ) में विस्तार से किया है। डा०
पाण्डेय का विचार प्रस्तुत में ज्ञातव्य है। वे लिखते हैं---
“** डा० भण्डारकर जव भारत के प्राचीन महषियों से सम्बद्ध परम्परायों
को हटा देने की बात करते हैं तो वे परम्पराओं के प्रति तर्कपूर्ण रुख नहीं अप-
नाते । प्रो० वेबर के तर्कों को अपने तकों की पुष्टि के लिए छाना ही कोई मूल्य
नहीं र्लता, जिनके कितने ही सिद्धान्त कालान्तर में अ्रमपूर्ण सिद्ध हुए हैं।
गाथासप्तशती मे कोई असद्धति नहीं दै, जिसका उत्तर (हपंचरित' को देना
पडता है । वस्तुतः यह् कुलित पद्ये का कोष है। हमे अन्य सधनो से ज्ञात
होता है कि हाल सातवाहन प्राकृत-साहित्य के बहुत बडे संरक्षक तथा स्वयं एक
बहुत बड़े कवि थे--
केऽभवच्नाल्यराजस्य राज्ये प्राकृतभापिणः । भोज ( सरस्वती कं० )
( आब्यराज: शालिवाहन:--र त्नेश्वर )
दिवंगत डा० सर रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर ने भी हषचरित के सातवाहन
को हाल सातवाहन बताया है ( बाम्वे गजेटियर भाग १, खण्ड २, पृ० १७ )।1
प्रबन्ध चित्तामणि के लेखक मेरुतुंग ( १० २६ ) तथा फ्लीट का भी यही मत है
( जे० आर० ए० एस० १९१६, पु० ८२० ) |
जहाँ तक 'गाथासप्तञश्वती' में राधिका के उल्लेख का प्रइन है, यह दिखाया
जा सकता है कि कल्पना की किसी उड़ान में भी गाथा की तिथि बाद में सिद्ध
नहीं होती । पांचवीं शती के 'पद्चतन्त्र' में राधिका के उल्लेख से यह मान लेना
आवश्यक नहीं कि यह सर्वप्रथम उल्लेख है! पांचवीं-शत्ती में राधिका ,के उल्लेख:
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