जिलाधीश की वापसी | Ziladhish Ki Vapsi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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নিননা নুল दे दिया था शेखर ने उसको ! आज भी शीला का मन अपनी
मूखता आर णवर की नीचता कौ वात साच साच क्सा-कैसा ता हो आता
)
+ मैं बहता हू सुरेश का वाणी स॑ प्यार है नौर तुमहा कि उम देवता
मान पूज जा रही हा।” शेयर जा आरम्भ स ही उस पर छान का प्रयत्त
कर रहा था और तिसे वह सदा ही दूर रखती जायी थी, एक दिन अवसर
पाकर योल पटा था । जनाव च्ह् क्या दर्ती, पर अपने सशय की सम्पुष्टि
हान दस उसकी दाना आख भर जायी ची नौर एस अवसरा पर कभी न
चूरन वाल शेयर न उसकी दाना हेथेलिया का जपन हाथा मं थाध शायद
बटत दिना से जीम पर चढी वात उत्तार ही दी थी अगर तुम कभी मेरी
आबोम भी वह यांत टढन का प्रबत्व करती जिस तुम सुरण की लाखा
मे दंढन दा निरथव प्यास वरती भा ही हा ता न ता में इस अनावश्यव/
भटकाव का शिवार होता और न तुम एवं अनिश्चय वी स्थिति मे पड़ी
रहता। नौर फिर वह् इस भयसं ग्रसित दोपि दहो यैर भी अपन भटकाव
वा शिवार हा कसी अय विनार॑ 7 लग जाय उस जाग वढन का प्रासा-
पहित करने उजेगी थी ओर सुरेश वी तरफ से उसता मन हटने लगा था।
काश, सुरश को शीता के मन के पाप का पता लग गया हांता जौर वह समय
रहत सजग हां गया होता, ता आज न ता वहां टूटता न शीला ही इस द्वद्व
वा शिकार हा जव्यवस्थित और अस तुलित होती ।
सुरेश की जाखे चली थौ ओर उस समय खुली थी जय शीला की
आरं सदाके लिए वदल गयी थी ¦ शेखर यद्यपि अपना ग्रेजुएशन नही कर
सका था और शीता एम० ए० करत जा रही थी, पर शीला पर शेखर
का वह भूत सवार हो गया था जो उत्तरने को नही था । कई वार शीला
ने शेयर के बत्त हाथ रावने चाहे ये पर अत में वह सफ्ल हो गया था
नार शीला नेसफल । शायद उसका विरोत ही तण्डा नही रहा।
कितनानतरथा शेर नौर सुरथ वे त्वौ म । दोना जयेदोघ्रूबो
से वाल रहै यै । उस्र दिन जव उसनं शेखर का हृद से ज्यादा बढन से मना
क्या था, तो वह वाल पडा था “म नटी समज्ञा पाता शीला, कि तुमने
ध्यारम सबम की बात कहा स सीख ली। शायद सुरेश का थोथा दशन
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