समयसार अनुशीलन | Samayasar Anushilan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
506
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)7 कलश १
जीवद्रव्य में ही पाया जाता है, पुदगलादि अजीव द्रव्यो मे नहीं।
इसीकारण यह चित्स्वभाव, भगवान आत्मा का लक्षण है, पहिचान का
चिन्ह है । इसके माध्यम से भगवान आत्मा को अजीवादि परद्रव्यो में
भिन्न जाना जा सकता है।
तत्वार्थसूत्र में ज्ञान-दर्शन उपयोग को ही जीव का लक्षण कहा गया
है ।* जानना-देखना जीव का स्वभाव है । जानने-देखने को ही चेतना
कहते हैँ; इसीकारण यहाँ चित्स्वभाव शब्द का प्रयोग किया गया है ।
यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है कि जानना-देखना जीव का
स्वभाव तो है; पर वह किसको जानता-देखता है अथवा किसको
जानना-देखना उसका स्वभाव है?
इसी के उत्तर मेँ कहा गया है कि भगवान आत्मा सब पदार्थो को
जानने-देखने के स्वभाव वाला है, वह सर्वज्ञस्वभावी है । आत्मख्याति
के परिशिष्ट में जिन ४७ शक्तियों का निरूपण है, उसमें सर्वदर्शित्व
ओर सर्वज्ञत्व शक्तियों का भी निरूपण है।
यद्यपि यह पर्याय की बात लगती है; क्योंकि जानने-देखने की
क्रियातो पर्यायमें ही होती है, तथापि यह पर्यायस्वभाव की बात है,
प्रगट पर्याय कौ बात नहीं; सर्वता की बात नही, सर्वस्षस्वभाव की
बात है । यहाँ जिस समयसाररूप भगवान आत्मा को नमस्कार किया
गया है, बह सर्वज्ञपर्याय सहित भगवान आत्मा कौ बात नहीं है, अपितु
सर्वज्ञस्वभावी त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा की नात है ।
यहाँ सर्वज्ञस्वभाव की बात करके सर्वज्ञाभाववादियों का निराकरण
भी कर दिया गया है।
यहाँ एक प्रश्न फिर उपस्थित होता है कि ऐसा भगवान आत्मा जाना
जा सकता है या नहीं ? सर्वज्ञ भगवान के ज्ञान में तो जाना ही जाता
१ आचार्य उमास्वामी : तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय २ सूत्र ८
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