ओरियण्टल कालेज मेगज़ीन | Oriyantal Kalej Megazin

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Oriyantal Kalej Megazin by डॉ. लक्ष्मण स्वरुप - Dr. Lakshman Svaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय संपादन-शास्त्र पहिला अध्याय भूमिका संपादन-शास्त्र वह्‌ शास्त्र है जिखके दास किसी प्रा्ीन रचना की उपलब्ध हस्तलिखित प्रतिलिपियों आदि के आधार पर हम उस रचना को इस्र प्रकार संशोधन कर सके फ जहां तक संभव हो स्वयं रचयिता की मोक्िक रचना या उसकी प्राचीन से प्राचीन अवस्था का ज्ञान हो सके । इसमे प्रतियों का परक्पर संघ क्या है, उनका मूलस्रोत कौनसा है, उन में क्रश: कौन कोनसै परिवतेन हुए और क्यों हुए, उन से प्राचीनतम पाठ केते निश्चित किया झाए, उन की अशुद्धियों का सुधार कैसे करमा चादिए, आदि बातों पर विवेचन किया जाता है। संत्तेपत: इस शास्त्र की सहायता से किसी रचना को उपलब्ध प्रतियों आदि कै मिलान से जहां ब्रक हो सके उघके मोलिक अथवा प्राचीनतम रूप का निश्चय किम्रा ज्ञा सकता है। मोसिक रूप से हमारा तात्पय किसी रचना के उस रूप से है ज्ञो उसके रचयिता को अभीष्ठ था। इस शास्त्र का संबंध प्राय: प्राचीन रचनाओं से है । 'रबना' को ओर मी अनेक खज्ञाएं हैं जैते पुस्त, पुस्तक, पोथी, सूत्र, प्रथ, एति श्रादि । पृशन ओर 'पुस्तक'' संस्कृत धातु 'पुस्त' ( बांधना ) स्रे निकले हैं। चूंकि प्राचीन काल में जिन पन्रादि पर रचना लिखो जाती थी उन को धागे से बांधते भै, इसलिए रचना को 'पपुस्त' या 'पुस्तक' कहते थे। 'पुस्तक' शब्द से ही प्राकुत तथा आधुनिक भारतीय आये भाषाओं का पोथी' शब्द निक्रज्ञा है । 'सूत्र' उस सूत्र या ढोरी फो स्छृति दिलाता है जिप से पत्रादि बांधे जते थे । श्रय ' प्रथ्‌” (वाधना, गांठ देना) धातु से निकला है रौर पत्रादि को बाधने के लिए सूत्र में दी हुई गांठ का सूचक है । यह रचनाएं प्रायः वनस्पति से प्राप सारी (ताडपत्र, भोजपत्र, काग, सकी, वस्त्रादि ) पर लिखी ज्ञाती थीं अ्रतः इन के विभागों फो स्कंष, कांड, शाखा, वल्ली आदि नाम १. संभव है कि 'पुस्त', 'पुस्तक' शब्द्‌ फ़ारसी से लिए गए हों क्योंकि उस भाषा में 'पुए्त' , 'पोस्त! ( >सं७ पृष्ठ ) का अथ 'पीठ, चम होतः दै, भौर फ्रारस के लोग चम पर लिखते थे । २. लेख धातु, चर्म, पाषाण, ईट, मिट्टी की मुद्रा :व्पादि पर भौ मिलते हैं।




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