कला और बूढ़ा चाँद | Kalla Aur Budha Chand

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kalla Aur Budha Chand by श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

Add Infomation AboutSri Sumitranandan Pant

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ओ रंभाती नियो वेसुध कहाँ भागी जाती हो? वशी रव तुम्हारे ही भीतर है | জী ছল गुच्छ लहरो की पूंछ उठाए दौडती नदियो, इस पार उस पार भी देखो,- जहाँ फूलो के कूल, सुनहले धान के खेत है! कल कल छल छल अपनी हो विरह व्यथा प्रीति कथा कहते मत चली जाओ । सागर ही तुम्हारा सत्य नही । वह्‌ तो गतिमय श्रोत की तरह गति हीन स्थिति भर है । तुम्हारा सत्य तुम्हारे भीतर है .... १६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now