प्रथमा साहित्य दर्पण | Prathama Sahitya Darpan

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Prathama Sahitya Darpan by पंडित बाबूराम - Pandit Baburam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ हिन्दी-साहित्य सम्मेलन-परीक्षाओं ( छगान का मुनाफ़ा तथा सूद आदि ) प्राप्त होज्ञाती है तो वे कट चमक जाते हैं और इसमें किसी भी प्रकार की कभी पड़ने पर वे कट मुरका जाते।हं । द (११) क चरण में 'की' बारहवीं मात्रा पर यति रक्खी हे, जो इस चछन्द के गोरा होने के कारण नियमानुसार ग्यारहवीं मात्रा पर रहनी चाहिये थी। यदि 'लछग्काई!' की 'ई' को हस्व - करके यतिभंगदूषण ठीक भी कर लिया जाय तो फिर अगली तेरह मात्राओं का रचना.क्रम ठीक नहीं रहता। अर्थात्‌ ३--२-+-४+-४ या ३--२+३--३ + २.' यह क्रम नहीं रहता वह ३+३--३--७४ या ४--३ -४+२ हो जाता है, जो अशुद्ध है। और घ चरण में भी यतिभंगडूषण है, क्योंकि “ऊपर” के 'प' अक्षर पर यति पड़ती है। अर्थात्‌ एक ही शब्द्‌ के दो अन्तर ग्यारह मात्राओं की ओर चले जाते हैं और एक्र तेरह मात्राओं की ओर चला आता हे। (१२) इस छुन्द में कवि ने उपरदेशक की. दान-प्रवुत्ति और घ्रमेज्ता का वर्णत करते हुए यह लिखा है कि ऐसे अवसर पर वह देश, काल तथा पात्र का भी विचार नहीं करिया करता था; त्युत वह शरणागत एतम्‌ अतिथि को दःखी देखकर तुरन्त व्याकुल हो उठता था ओर शीघ्रा- तिशीघ्र उसका दुःख दूर करने की चेष्टा करता था| यह वास्तव में तटि है। ऐसा आदमी पाखरिडयों के. चक्कर में भी आ सकता है। भारतवर्ष में भी ऐसी अनेक त्र्‌ टियाँ हुई है। प्राचीन युगों की बात जाने दीजिये । आधुनिक युग की ही और ध्यान दीजिये। -- : (१) यदि पृथ्वीराज चौहान ने शहाबुद्दीन




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