सोने का संदूक | Sone Ka Sandook
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गोबर गणेश का गधा
शाम का समय था | दो ठग आपस में चुहलबाजियाँ करते
हुए एक वीरान सड़क पर चले जा रहे थे | उनकी नजर
एक आदमी पर परी जो अपने साथ एक गधा लिए जा रहा
था | उसे देखकर एक ठग ने कहा--“देख यार, कैसा गोबर
गणेश-सा आदमी है यह । इसे तो बहुत आसानी से मूर्ख
बनाया जा सकता है |“
दूसरे ठग ने पूछा-“कैसे ?”
मैं इसके सामने ही इसके गधे को उड़ा दूँगा ।
दूसरे ठग ने पूछा-“कैसे ?”
पहले ठग ने उसे सारी योजना समझाई | उसके बाद
पहला ठग गोबर गणेश के पीछे-पीछे चल दिया | मौका
देखते ही उसने चतुराई से गधे की रस्सी ढीली कर दी ।
फिर उस रस्सी को अपनी गरदन में डाल लिया | अब वह
फिर गोबर गणेश के पीछे-पीछे चलने लगा |
दूसरा ठग गधे को एक खास जगह ले गया । तव
अचानक पहला ठग रुक गया । दुबारा झटका देने पर भी
जब वह नहीं हिला तो गोबर गणेश ने पीछे मुड़कर देखा तो
पाया कि उसका गधा गायब है | उसके पैरों तले से जमीन
ही खिसक गई । उसने घबराते हुए पूछा-“तुम कौन हो
भाई ' यहाँ कैसे आ गए ? मेरा गघा कहाँ गया ^
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