सोने का संदूक | Sone Ka Sandook

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Sone Ka Sandook by सारिका शर्मा - Sarika Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोबर गणेश का गधा शाम का समय था | दो ठग आपस में चुहलबाजियाँ करते हुए एक वीरान सड़क पर चले जा रहे थे | उनकी नजर एक आदमी पर परी जो अपने साथ एक गधा लिए जा रहा था | उसे देखकर एक ठग ने कहा--“देख यार, कैसा गोबर गणेश-सा आदमी है यह । इसे तो बहुत आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है |“ दूसरे ठग ने पूछा-“कैसे ?” मैं इसके सामने ही इसके गधे को उड़ा दूँगा । दूसरे ठग ने पूछा-“कैसे ?” पहले ठग ने उसे सारी योजना समझाई | उसके बाद पहला ठग गोबर गणेश के पीछे-पीछे चल दिया | मौका देखते ही उसने चतुराई से गधे की रस्सी ढीली कर दी । फिर उस रस्सी को अपनी गरदन में डाल लिया | अब वह फिर गोबर गणेश के पीछे-पीछे चलने लगा | दूसरा ठग गधे को एक खास जगह ले गया । तव अचानक पहला ठग रुक गया । दुबारा झटका देने पर भी जब वह नहीं हिला तो गोबर गणेश ने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि उसका गधा गायब है | उसके पैरों तले से जमीन ही खिसक गई । उसने घबराते हुए पूछा-“तुम कौन हो भाई ' यहाँ कैसे आ गए ? मेरा गघा कहाँ गया ^




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