प्रेमचन्द्रोत्तर हिन्दी उपन्यास में मानव नियति का प्रश्न - अज्ञेय के विशेष सन्दर्भ में | Premchandrottar Hindi Upanyas Men Manaw Niyati Ka Prashn - Agyey Ke Vishesh Sandarbh Men

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Book Image : प्रेमचन्द्रोत्तर हिन्दी उपन्यास में मानव नियति का प्रश्न - अज्ञेय के विशेष सन्दर्भ में  - Premchandrottar Hindi Upanyas Men Manaw Niyati Ka Prashn - Agyey Ke Vishesh Sandarbh Men

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शब्दों के पुयोगजन्य विविध अर्थी की विभिन्‍नताओँ को ध्यान में रखते हुए निष्कर्श निकलता है कि तंत को छोड़कर “नियति' का प्रयोग भारतीय दर्षन की कर्मपल- वाटी धारणा ते जुड्ा हुआ टैग धारणा मनुष्य के 'कर्म' के परिणाम के पृत्ति चिन्ता কা निष्य करती है । भारतीय पिन्त्धारा कहीं भी उद्यौग का निषेध नहीं करती है ; नीतितन्यों में तो उद्योग को ही महत्व दिया गया है । उधीोम करने पर यदि लष्ष्य प्राप्त नहीं होता है तो कहा जाता है कि यही नियत्ति थी | ए दर्शनो में লিহিঘল लक्ष्यवादिता भी नियत्विदिता मानी जाती है । मार्कवादया बाँद्व्गन इतके प्रमाथ माने जाते हैं । ताहित्य के तन्दर्भ में नियतिबोध का अर्थ होता है कि रचनाकर्म में रचनाकार को रचना का तम्पूर्णया बोध होना । सम्पूर्ण रचना का स्पष्ट होना हीं साहित्य की टूष्टि ते लेखक की नियति का बोध होंना' है । ल्वतंत्रता के पूर्व के लेखकों में निवतिबॉध स्पष्ट है और बाद में कम । इसका दारण सामाजिक संदर्भ में कोजा जा तकता हि ¦ उपन्यास के भीतर यह पात्राँ के कर्म और उसके परिणाम का तम्पूर्ण रचना में श्क वाक्य क्षी तरह तम्बद्ध हॉना ही महत्वपूर्ण है । আআ मनृध्येतर शक्ति पर विववात और कर्मलवाद सामान्य घारणाओं के अनुसार नियति शक मनुष्येतर शक्ति है जो जीव पर कभी पुतनन होंती है और कभी छुद । वह जीव के कर्मों का भी ध्यान रखती है तथा इईवर के तंकेत पर भी उसका भाग्य निरिति छिपा करती हि! मानवीय प्रयत्न और पुरुणा व॑ उत्त शाक्ति के विधान में डिसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर तक़ती |... इवटीय शक्ति मनुष्य को किसी भी कार्य के वरण तथा संकल्य को आकस्मिक या सापाँमिक बना देता है तथा उसकी করনা ইতল লাল যা टैवयोंग प्रतीत हो ती है। अनुष्य पहने ते अपने कार्यद्रम शव घौजनाओँ को লিহঘমদূত্রক निधारित करने में प्राय: तमर्थ नहीं हो হালা क्योंकि वह ल्वयं नहीं जानता छिरैवया दीव उवे কিন মিনার হল में क्या करवायेगा । ह अभटित्यटित पटबति तानि दुर्घटी करों'ति तुघटितधटि | विधिरेव तानि पटयति यामि पुमान्मैव चिन्तयति ॥ । इ0 तमन्धात वाण्डेव, नौति म तवे, १० +,




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