गीति - काव्य | Geeti Kabya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गीति-काव्य ७ लिए सल्जीतात्मकता अपेक्षित रही । वाल्मीकीय रामायण गेय है ओंर स्व- कुशने रासके आगे उसका सखर गान किया था। नीति या स्तोत्र पद्च- बद्ध होकर भी गीति-काव्य नहीं, कारण झात्सनिश्ताका अभाव है | खण्ड काव्योंमेंसे अनेकर्में गीति-तत्त्व प्रचुर मात्रामें विद्यमान हैं किन्तु वे शुद्ध गीति-काव्य नहीं । मेघदतमें कालिदासने वेयक्तिक ह्ष-शोककी अभि- व्यञ्जना की हे किन्तु इसके आधार-रूपमें आख्यानका आग्रह भी कम नहीं । इस कारण इसमें गीति-काव्य ओर आख्यान-काव्यके तत्वोका सस्सिश्रण है | “मन्दाक्रान्ता'में एक ओर विषादकी जहाँ गंभीर অলি- मिश्रणके द्वारा इसमें 'लिरिकल बेलड! ( 1,971021 0921120 >) श्रगीत- गाधाः का आग्रह अधिक है| मेघदतका गीति-काव्यत्व देखने योग्य है--- मामाकाराप्रसिदितमुञं निदेयाश्टेषहेतो-- लच्धायास्ते कथमपि मया खप्र घं दशनेषु । पश्यन्तीनां न खलु वहुशो न खलीदेवतानां । सुत्त स्थूलास्तरुकिसलयेष्वश्रुटेशाः पतन्ति । [ परिये ! स्वधमे किसी तरह जवर में . तठुझको पा जाता हूँ, शून्य गगनमें आलिट्लननको तब बॉहें फेलाता हूँ। वनदेविय दशा यह्‌ मेरी देख-देख दुःख पाती हैं ; आँसुकी मोती-सी वदे पत्तौपर बरखाती हे । ] भिया सश्चः किसलयपुटान्देवदारुद्रमाणां । ये तत्त्ीरस्नतिसुरभयो दक्षिणेन प्रवृत्ताः तपेति नूह ॥ হাংরি ॥ দা নপগ 149 বজমউএসউনদাজা জাম জলির রা পা পাকার টাকাটা রাও গজায় # केदवप्रसाद मिश्र कृत हिन्दी अनुवाद |




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